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________________ आओ संस्कृत सीखें 1114319. सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सत्क्रूिरतरः खलः । मन्त्रेण सान्त्व्यते सर्पः, खलस्तु न कथंचन ।। 20. त्यजन्ति सर्वेऽपि धनैर्विहीनं, पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च । तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ते, वित्तं हि लोके पुरुषस्य बन्धुः ।। पाठ-36 अन् अंतवाले नाम धुट् प्रत्ययों पर न के पहले का स्वर दीर्घ होता है, परंतु संबोधन एक वचन में दीर्घ नहीं होता है । उदा. राजन् + 0 = राजान्' पद के अंत में रहे नाम के न का लोप होता है | राजान् = राजा राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः राजन् + भ्याम् = राजभ्याम् 3. स्वर से प्रारंभ होने वाले अघुट (घुट् को छोड़कर) प्रत्ययों पर अन् के अ का लोप होता है। उदा. राजन् + अस् राजन + अस् राज् + ञ् + अस् = राज्ञः 4. नपुंसक प्रथमा द्वितीया द्विवचन के ई प्रत्यय पर और सप्तमी के इ प्रत्यय पर अन् के अ का विकल्प से लोप होता है । राज्ञि, राजनि नपुं. दामन् + ई = दाम्नी, दामनी दामन् + इ = दाम्नि, दामनि 5. संबोधन में नाम के न का लोप नहीं होता है । हे राजन् ! 6. नपुंसक में संबोधन के न् का विकल्प से लोप होता है | उदा. हे दाम्, हे दामन् !
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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