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________________ 2100 आओ संस्कृत सीखें हैं। 8. व्यंजनादि उत्तर पद पर न (नञ्) का अ हो जाता है | न धर्मः - अधर्मः 9. स्वरादि उत्तर पद पर न (न) का अन् हो जाता है । न अर्थः - अनर्थः 10. एक समान विभक्ति में रहा विशेषण नाम, अपने विशेष्य नाम के साथ समास पाता है, उसे कर्मधारय-तत्पुरुष समास कहते हैं | उदा. श्वेतश्च असौ पटश्च = श्वेतपटः । शब्दार्थ अभ्यास = आदत (पुंलिंग) मैत्री = मित्रता (स्त्रीलिंग) प्लवङ्ग = बंदर (पुंलिंग) विभूति = वैभव (स्त्रीलिंग) भुजङ्ग = सर्प (पुंलिंग) शाखा = डाल (स्त्रीलिंग) भृङ्ग = भौरा (पुंलिंग) द्वार = दरवाजा (नपुं. लिंग) भेद = अलग (पुंलिंग) मौन = मौन (नपुं. लिंग) मध्य = बीच में (पुंलिंग) वर = अच्छा (नपुं. लिंग) विभाग = अलग करना (पुंलिंग) स्वप्न = स्वप्न (नपुं. लिंग) विहङ्ग = पक्षी (पुंलिंग) क्षीर = दूध (नपुं. लिंग) तरुणी = युवास्त्री (स्त्रीलिंग) जीर्ण = क्षीणहुआ (विशेषण) धातु ह्वे (वय) = बुलाना (गण 1 उभयपदी) वाञ्छ् = इच्छाकरना (गण 1 परस्मैपदी) संस्कृत में अनुवाद करो 1. उत्तम मनुष्य धर्म नहीं छोड़ते हैं । 2. नदी के किनारे वृक्ष होते हैं । 3. घर के द्वार पर वह खड़ा है । 4. देव और गुरु पूज्य हैं । 5. हाथी, घोड़े और बैल पानी पीकर गए । 6. पंडितों की सभा में जो पंडित न हो, उसे मौन रहना चाहिए । 7. सुख और दुःख आते हैं और चले जाते है ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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