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________________ आओ संस्कृत सीखें 885 शब्दार्थ अग्नि = आग (पुंलिंग) चित्तरंजन = चित्त का रंजन (नपुं.) आनंद = आनंद (पुं.) दूर = दूर (नपुं.) काल = समय (पुं.) फल = फल (नपुं.) केतकी गंध = केतकी की गंध (पुं.) पुंडरीक = कमल (नपुं.) चंद्रकांत = चंद्रकांत मणि (पुं.) भद्र = कल्याण (नपुं.) दिन = दिवस (पुं.) मूल = जड़ (नपुं.) दीप = दीपक (पुं.) अशुभ = अशुभ (विशेषण) दुष्पुत्र = खराब पुत्र (पुं.) उद्गत = उगा हुआ (विशेषण) नाथ = स्वामी (पुं.) नीच = हल्का (विशेषण) पतंग = सूर्य (पुं.) फल = कार्य (विशेषण) वह्नि = आग (पुं.) इव = तरह (अव्यय) शुष्कवृक्ष = सूखा वृक्ष (पुं.) स्वयम् = खुद (अव्यय) षट्पद = भ्रमर (पुं.) आघ्रातुम् = सूंघने के लिए (हेत्वर्थ कृदन्त) सङ्ग = संगति (पुं.) चेत् = यदि (अव्यय) हिमरश्मि = चंद्र (पुं.) दृष्ट = देखा हुआ (भूतकृदंत) जननी = माता (स्त्रीलिंग) नष्ट = नाश हुआ (भूतकृदंत) पताका = ध्वजा (स्त्रीलिंग) हत = मारा हुआ (भूतकृदंत) प्रजा = प्रजा (स्त्रीलिंग) पूजित = पूजा हुआ (भूतकृदंत) कानन = जंगल (नपुं.) ' धातुओं के अर्थ अप + ईक्ष् = अपेक्षा रखना (गण 1 आत्मनेपदी) उद् + गम् = उगना, ऊँचे जाना (गण 1 परस्मैपदी) वि + कस् = विकसना, विकस्वर होना कस् = खिलना (गण 1 परस्मैपदी) गै (गाय) = गाना (गण 1 परस्मैपदी) दु = झरना, भीगना (गण 1 परस्मैपदी) रट् = रोना, पढना (गण 1 परस्मैपदी) वि + सम् + वद् = विपरीत बोलना, निष्फल होना (गण 1 परस्मैपदी) उप + विश् = बैठना (गण 6 परस्मैपदी)
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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