SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी विचार पश्चाशिका.. ( ८५) जोवो अंदर गणवाथी ) आ अल्प बहुत्व आठ गतिने आश्राने कहेलुं छे. ४१. हवे एकेन्द्रियादिकनुं अल्प बहुत्वं कहे छे:-- पण चउ ति दुध अनिंदिअ एनिंदिय सेंदिआकमा हुति । थोवा तिअति अहिया दो णंत गुणा विसेस हिआ ॥ ४२ ॥ अर्थ - पंचेन्द्रिय सौथी थोडा हे, तेनाथा चतुरिंद्रिय अधिक छे, तेनाथी त्रींद्रिय अधिक छे, तेनाथी द्वींद्रिय अधिक छे, तेनाथी अनिंद्रिय एटले सिद्धो अनंतगुणा छे, तेनाथी एकेन्द्रिय (वनस्पति निगोद विगेरे ) अनंतगुणा छे, अने तेनाथी सेन्द्रिय (एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय विगेरे ) विशेषाधिक छे, ४२. हवे सकायनुं अल्प बहुत्व कहे छे:-- तस ते पुढवि जल वायुकाय अकाय वणस्सह सकाया । थोव असंखगुणाहि तणिओ दो णंत गुण अहिआ॥४३॥ अर्थ -- सौथी थोडा त्रस जीवो हे, तेनाथी तेजस्काय अ संख्य गुणा छे, तेनाथी पृथ्वीकाय अधिका छे, तेनाथी अप्कायअधिका छे, तेनाथी वायुकाय अधिका छे, तेनाथा अकाय एटले सिद्धो अनंतगुणा छे, तेनाथी वनस्पतिकाय अनंतगुणा हे, अने तेनाथी सकाय अधिका छे. ४३. अहीं अकाय शब्दे सिद्धी जाणवा अने सकाय शब्दे सर्व संसारी जी जागवा. हवे जीवाजावा दिनुं अल्प बहुत्व आ प्रमाणे:-- जीवा पुग्गल समया दव्व पएसा य पज्जयाचेव । धोवा ता ता विसेसमहिआ दुवे पंतां ॥ ४४ ॥ अर्थ -- जीव, पुद्गल, समय, द्रव्य, प्रदेश अने पर्यायो-ए
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy