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________________ मूल तथा. भाषांतर अर्थ--जेणे पोतानी पर्याप्तिओ हमणां पूर्ण करी नथी, परंतु आगळ उपर अवश्य पूर्ण करवानो छे, ते करण एटले शरीर इन्द्रियादि वडे अपर्याप्तो होय त्यां सुधी करण अपर्याप्तो कहेवाय छ, अने जेणे पोवानी पर्याप्तिओ पूर्ण करी होय छे ते करण पर्याप्तो कहेवाय छे. ३९. हवे अल्प वहुत्व नामनो छठो विचार कहे छे:-- नर नेरहआ देवा सिद्धा तिरिआ कमेण इह होति । थोव असंख असंखा अणंत गुणिआ अणंतगुणा ॥४०॥ अर्थ--मनुष्यो सौथी थोडा छे, तेनाथी असंख्य गुणा नारकी के, वेनाथी असंख्य गुणा देवताओ छे, तेनाथी अनंतगुणा सिद्धो छे, अने तेनायी अनंतगुणा तिर्यचो छे, एम अनुक्रमे जाणवू. आ अल्प बहुत्व पांच गनिनी अपेक्षाए कहेलं छे. ४० नारी नर नरइआ तिरिस्थि सुर देवी सिद्ध तिरिआ य। थोव असंखरण चउ संखगुणऽनंतरण दुनि ॥ ४१ ॥ अर्थ--मनुष्यकी स्वीओ सौथी थोडी छे, तेनाथी चार असंख्य गुणा छे, एटले के मनुष्यनी स्त्रीओथी मनुष्यो असंख्य गुणा छे, अहीं संमूर्छिम मनुष्यो पण भेळा लेवा, केमके अहीं वेदनी विवक्षा नथी.+ तेनाथी नावीओ असंख्य गुणा छे, ते. नाथी तिर्यचनी स्त्रीओ असंख्य गुणी छे, अने तेनाथी देवताओ असंख्य गुणा छे. तथा देवताओथी संख्यात गुणी देवीओ . . त्यार पछी बे अनंतगुणा छे, एटले देवीओथी अनंतगुणा सिद्ध छे, अने तेनाथी पण अनंतगुणा तिर्यचो छे. (म्रक्ष्म बादर निगोदना + पुरुषवेदी ने नपुंसकतंदी बन्ने नर शन्दे लेवा. संमडिम मनुष्य नपुंसकवेदी ज होय छे अने असंख्याता होय छे. पुरुषवेदी कर्मजतो संख्याता जोय छे.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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