SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो कायस्थिति प्रकरण. नवी काइक होन (ओछी) छे, अने तेमनां शिवरपरनी परिषि प्रण हजार एकसो ने बासठ योजन छे. ते पर्वतोनी चारे दिशाओमां मूंछे ते कहे छे ?लरकंतरिआ चउ चउ वावी स दस य जोअणुचिट्ठा। लरकं दीहपिहुच्चे तम्मज्झे दहिमुहा सोल ॥ ६२॥ ___ अर्थ-लाख योजनने आंतरे एटले ते चारे अंजनगिरिनी चारे दिशाओमा लाख लाख योजनने छेटे चार चार वावो के. वेमनां नामो आ प्रमाणे-पूर्व दिशामां रहे लो जे अंजनगिरि छे, तेनी पूर्व दिशामा लाख योजनने छेटे पूर्वमां नंदोत्तरा, दक्षिणमां नंदा, पश्चिममां आनंदा अने उत्तरमां नंदीवर्धना ४ नामनी वा छे. दक्षिग दिशामां जे अंजनगिरि छे तेनी पूर्व दिशामां भद्रा ५, दक्षिणमां विशाला ६, पश्चिममां कुमुदा ७, अने उत्तरमा पुंडरीकिगी ८, नामनी वावो छे. पश्चिम दिशामां जे अंजनगिरि छे, तेनो पूर्वमां नंदिषेणा ९, दक्षिणमां अमोया १०, पश्चिममां गोस्तुमा ११, अने उत्तरमा सुदर्शना १२ नामनी वावो छे. तथा उत्तर दिशामां रहेला अंजनगिरिनी पूर्वमा विजया १३, दक्षिणमां वैजयवंती १५, पश्चिममां जयंती १५, अने उत्तरमा अपराजिता १६, नामनी वाको छे. ए प्रमाणे सोळ वावो छे. ते दरेक वाव दश दश योजन उंडी छ, निर्मळ, शीतळ अने स्वादु जळ्थी भरेली छे, तथा मत्स्य विगेरे जळचर प्राणीओथी रहित छे. ते दरेक वाव लंबाइमां नथा पहोलाइमां लाख योजननी छे. ते चारे दिशामा रहेली सोळे वावो जंबूदीप जेटली परिघवाली विचित्र मणीभीनां पगथीयां अने यांभलाओथी तया विविध प्रकारनी पूतळीओ अने मोटा तोर गोयो युक्त के. वे दरेक वाव पूर्व विगेरे दिशाना अनुक्रमे अशोक, सप्तच्छद, क अने आम्रना बनोए करीने व्याप्त छेएटले सर्व
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy