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________________ श्री कायस्थिति प्रकरण. (२९) पनरस तीस छपन्ना कम्माकम्मा तहंतर दीवा। गम्भा पज अपज्जा समुच्छ अपज्जा तिसय तिनि॥११॥ अर्थ-पांच भरत, पांच औरवत अने पांच महाविदेहमां उत्पन्न थनारा एटले कुल पंदर कर्मभूमिमां उत्पन्न थनारा मनुष्यो तथा भरत अने भैरवतनी बच्चे रहेला पांच हैमवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यक, पांच हैरण्यवंत, पांच देवकुह अने पांच उत्तरकुरु. ए त्रीस अकर्मभूमिमां उत्पन्न थनारा युगलियां, तथा क्षुद्र हिमवंतने शिखरी पर्वतना पर्यंतमांथी अने पश्रिम तरफ हाथीना दांतने आकारे वबे दाढाओ नीकलीने लवण समुदमो गयेली छे. ते दाढाओ कुल आठ थइ. ते दरेक दाढाओ उपर सात सात द्वीपो छे. ए प्रकारे कुल छप्पन अंतरद्वीपोने विषे युगलियां थाय छे. ते पंदर, त्रीश अने छप्पन मळी एकसोने एक क्षेत्रमा जे गर्भज मनुष्यो थाय छे. तेओना पर्याप्त अने अपर्याप्त एवा बे भेद होवाथी तेना वने बे प्रकार थया, अने पूर्वे कहेला एकसोने एक क्षेत्रोने विषे संमूर्छिम मनुष्यो उपजे छे, तेओ केवळ अपर्याप्त ज होय छे. केमके तेमने पर्याप्तपणे उपजवानो अभाव छे. (तेओ पर्याप्ति पूरी कर्या अगाउ ज मरण पामे छे, तेथी ते एकसी एक भेळवतां सर्व मळीने मनुष्यना त्रणसोने त्रण भेदो थाय छे.) ११. __हवे देवताओना भेदो कहे छ:- .. भवणा परमा जंभय वणयर दस पनर दस य सोलसगं। गइ ठिर जोइस दसगं किन्विस तिग नव य लोगंता॥१२॥ अर्थ-दश भुवनपति, पंदर परमाधार्मिक; दश मुंभक, . अने सोळ व्यन्तर, तथा गति स्थिति अथवा चर अने स्थिर मेदवाळा पांच पांच ज्योतिष्क एटले कुल दश, त्रण किल्लिषिक अने नव लोकांतिक. १२.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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