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________________ मूल तथा भाषांतर. (२३७) अर्थ:-श्री महावीर स्वामीने नमस्कार करीने भव्य जीवोना हितने माटे पुलाक प्रमुख साधुभोनु किंचित ( लेशमात्र ) स्वरूप १५ पनवणं वेय रोगे, कप्पे चरित्त पडिसेवणा नाणे । तित्ये लिंग सरोरे, खित्त काले गइ संजम निगासे ॥१॥ जो गुवओग कसाए, लेसा परिणाम वैधणे वेर । कम्मोदीरण उवसंपेजहरण संन्नीय आहारे ॥ २ ॥ भव आगरिसे कालं तरेय समुग्धाय खित्तफुसणाय । भावे परिमाणं खलु अप्पाबहुयं नियंठाणं ॥ ३॥ ३६ - पन्नणं-प्रज्ञापन | आहारे-आहार वेय-वेर | निगति-निकर्ष भव-भव राग-राग जोग-योग आगरिसे-आकर्षण कप-कल्प उपभोग-उपयोग का-काल चरित्ते-चारित्र कप्ताप कसाय अतरेय-अंतर पडिपेषणा-प्रतिसेष- लेसा-लेश्या समुग्धाय-समुद्घात ना, विगधना परिणाम-परिणाम खित्त-क्षेत्र नाणे-ज्ञान बंधणे बंधन तित्थे तीर्थ घेए-वेद कमेनोउदय फुलणा-स्पर्शना लिंग-लिंग कम्मो दीरण-कर्मनी भावे-भाव सरीरे-शरीर उदीरणा परिमाणं-परिमाण खित्ते-क्षेत्र उपसंपजाण्ण-एकनी खलु-निश्चे काले-काल प्राप्ति अन्यनु छोडवू अप्पाबहुय-अल्पबहुत्व गह-गति | संन्ना-संज्ञा नियंटाग-पोतानास्थान अर्थः-१ प्रज्ञापनद्वार, २ वेदद्वार, ३ रागद्वार, ४ कल्पद्वार, ५ चारित्रद्वार, ६ प्रतिसेवनाद्वार, ७ ज्ञानद्वार, ८ तीर्यद्वार, ९ लिंगद्वार १० शरीरदार, ११ क्षेत्रद्वार, १२ कालद्वार, १३ गति दार, १४ संयमद्वार, १५ निकर्षद्वार- १
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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