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________________ ( २०४ ) निगोद षत्रिशिका. तेण फुडं चिय सिद्धं, एगपएसंमि जे जियपएसा । ते सव्यजीवतुल्ला, सुणसु पुणो जह विसेसहिया ॥२४॥ एग पपसंमि - एक तेज-ते कारण माटे पुणो-वळी जह-जेम विसेसाहिया - विशेषाधिक प्रदेशमां फुडं - स्पष्टपणे चिय-निश्च सिद्धं - साबीत थाय छे. सुणसु-सांभळो अर्थ-ते कारण माटे निचे स्पष्टपणे सिद्ध ययुं के एक प्रदेशमां जेटला जीव प्रदेशो के ते सर्व जीव तुल्य छे. हवे जे रीते विशेपाधिक थाय ते कहे छे. २४. जे-जे ते-तेओ विवेचन - हवे उत्कृष्टपदे वर्तता जीवोना जेटला प्रदेशा है, ते सर्व जीव तुल्य छे ते असत्कल्पनाए बतावे छे. पूर्व कल्प्या प्रमाणे एक जीवना सो कोटि प्रदेशो के तेने दश हजार प्रदेशनी अवगाहना होवाथी तेनाथी भागतां एक आकाश प्रदेशे एक एक लाख प्रदेश अवगाहे छे. हवे एक निगोदमां अनंता जीव छतां असत्कल्पनाए लाख गणवा. लाखने लाखे गुणवाथी हजार कोटि जीव प्रदेशो थया हवे निगोदो असंख्याती छतां असकल्पनाए लाख गणवाथी पूर्वनी राशिने लाखे गुणवाथी दश कोटाकोटि जीव प्रदेशो उत्कृष्ट पदे थया. हवे जीव पण तेटलाज छे. दशहजारनी अवगाहनावाळा गोलाओ असत्कल्पनाए एक लाख थाय छे. एक एक गोलामां निगोद असंख्याती छतां असत्कल्पनाए एक लाख कल्पेली छे. माटे लाखने लाखे गुणवाथी एक हजार कोटि निगोदो थाय. दरेक निगोदमां जीवो असंख्याता छतां असत्कल्पनाए लाख कल्प्या के माटे पूर्व राशिने लाखे गुणवाथी दश कोटाकोटि जीवो थाय छे. माटे उत्कृष्टपदे जीव प्रदेशो तथा समग्र जीवो बने सरखा छे, २४,
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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