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________________ मूळ तथा भाषांतर. ( १९७ ) विवेचन -- ज्यारे जोव जेनो प्रदेशराशि लोकाकाश तुल्य छे ते संकोच पामीने पोताना प्रदेशने निगोद मात्र क्षेत्रमा अवगाहे त्यारे तेना केटला प्रदेशो ते उत्कृष्टपदरूप आकाश प्रदेशमां होय. तेमज एक निगोद अने एक गोलानुं शुं शुं अवगाहेल के ? १५ हवे जीव आश्री उत्तर कहे के ? १५ जीवस्स लोगमित्तस्स, सुहमओगाहणावगाढस्स । इक्किम परसे, हुति पएसा असंखिज्जा ॥ १६ ॥ ओगाहणात्र गाढस्सअवगाहनामां अव जीवस्स-जीवना लोगमित्तस्त- लोकमात्र गही रहेल सुहुम-सूक्ष्म इकिमि - एक एक पप से प्रदेशमां . हुति - होय छे परसा- प्रदेशो असं खिज्जा-अस ख्याता अर्थ - लोकाकाश प्रदेश मात्र प्रमाणवाळी जीव सूक्ष्म अबमाहनामां रहे त्यारे आकाशना एक एक प्रदेशमां ( जीवना ) असंख्याता प्रदेशो होय छे. १६ विवेचनः -- एक जीवना प्रदेशो चौद राजलोकना प्रदेश तुल्य छे. ते असंख्याता छे. ते जीव ज्यारे सूक्ष्म नाम कर्मना उदयथी सूक्ष्म अवगाहनामां रहे छे न्यारे अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाण आकाश प्रदेशने अवगाहे छे. ते अंगुलना असंख्यातमा भागमः पण असंख्याता प्रदेशो छे. असंख्याताना असंख्याता भेद होवाथी लोकाकाशना असंख्यातने अंगुलना असंख्यातमा भागना असंख्यात प्रदेशे भागतां असंख्यात आवे माटे एक आकाश प्रदेशमां जीवना असंख्याता प्रदेशो अवगाहे छे. जीवना प्रदेशो असंख्याता छे तेने अस कल्पनाए से कोटि एटले अबज कल्पवा, तेने अंगुलना असंख्यानमा भागरूप असं
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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