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________________ सिरपंचाशिका. बाकीना १२ थी १५ सुधीनां अंतरादि चार द्वार अहीं घटे नहि. एवी रीते मूल पांचमु कालद्वार कहूं. हवे छहुँ अन्तर द्वार कहे :जवुद्धीवे धायइ, ओहविभागे य तिसु विदेहेसु । वासपहत्तं अंतर पुक्खरदुविदेह वासहियं १॥२०॥ अंबुद्धीव-जंबूद्वीपमां । तिसु त्रण पुक्खर-पुष्करवर घायह-घातकी खंडमां विदेहेसु-विदेहमां वासहिय-वर्षाधिक आह-ओग, सामान्य | वासपुहुत्तं-वर्ष पृथक्त्व दु-बे विभागेन-विशेषपणे । अंतरं-अंतर ___ अर्थ-जंबूदीप अने घातकीखंडमां सामान्ये, अने विशेषपणे अण विदेहने विषे वर्ष पृथक्त्व- अन्तर पुष्करवर अने तेनी बे वि. देहने विषे वर्षाधिक अंतर जाणवू. ॥१॥ - विवेचन-हवे क्षेत्रादि पंदर द्वारने विषे मूल छठं अंतर द्वार कहे : १ क्षेत्रद्वार-क्षेत्रद्वारे जंबूद्वीप अने घातकीखंडमां सामान्यपणे वर्षपृथक्त्वनुं अंतर जाणवु विशेषपणे जंबूद्वीपना एक महाविदेह अने घातकीखंडनी बे महाविदेह मळा त्रण विदेहने विषे तेटलुं अंतर जा. णवू.बळी सामान्यपणे पुष्कराधमां अने विशेषताथी तेनी बे विदेहने विषे वर्षाधिक अंतर जाणवू. ॥ २० ॥ भरहेरवयजम्मा, कालो जुगलीण संख समसहसा । संहरण २ नरयतिरिए, समसहसा समसयपहुत्तं ॥२१॥ तिरिईसुर नरनारीसूरीहिं उवएस सिद्धि लद्धीए। वासहि अंतर अहसयं, बोहीओ संख समसहसा ॥२२॥ सयंमुवएसा भूजलवण सुहमीसाण पढमदुगनरया ॥३॥ थीकीवेसुं भंगठगे असंखिज्जसमसहसा ॥२३॥
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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