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________________ प्राय: मान लिया है। इस आधार पर यास्क का समय ७५० ई. पूर्व होगा। महाभारत में भी यास्क का उल्लेख प्राप्त होता है 'यास्को मामृषिरव्यग्रोऽनेक यज्ञेषु गीतवान् शिपिविष्ट इति द्वस्मात् गुह्यनामधरोह्यहम्। स्तुत्वा मां शिपिविष्टेति यास्क ऋषिरूदारधीः मप्रसादादधो नष्टं निरुक्तममिजग्मिवान्।। ५० इस वर्णनसे पता चलता है कि यास्क महाभारतके निर्माणसे पूर्वकै होंगे। निरुक्तमें देवापि तथा शन्तनु दो भाइयोंका उल्लेख प्राप्त होता है। प्राप्त वर्णनके अनुसार शन्तनु देवापिकी उपेक्षा करके स्वयं राज्यका अधिकारी बन गया। देवापिने ऐसी स्थितिमें जंगलका मार्ग अपनाया। वे जंगलमें रहने लगे। इधर राज्यमें बहुत दिनों तक अवर्षण रहा। ब्राह्मणोंने इसका कारण बतलाया-'अधर्मपूर्वक राज्यकी प्राप्ति ५२ ऐतिहासिक प्रमाणोंसे ज्ञात होता है कि देवापि तथा शन्तनु कौरवों एवं पाण्डवोंके पूर्व पुरूष थे। अतः यास्क देवापि एवं शन्तनु के बाद के हैं। यह यास्कके समयकी ऊपरी सीमा है। निरुक्तमें यास्कने अक्रूर शब्दका उल्लेख किया है.'अक्रूरो ददते मणिम्'५३ इत्यमिमाषन्ते।' अक्रूरके पास स्यमन्तक मणि रहनेकी पुष्टि श्रीमद्भागवतसे भी होती है।५४ अक्रूरको देश छोड़कर भाग जाना पड़ा था क्योंकि भेद खुल जाने पर लोग कहा करते थे, 'मणि' अक्रूरके पास है। यह भी यास्कके समयकी ऊपरी सीमा है। इससे पूर्ण स्पष्ट हो जाता है कि यास्क अक्रूरके बाद के हैं। निरुक्तसे ज्ञात होता है कि यास्कके काल में ऋषियोंका उच्छेद होना प्रारम्भ हो गया था५ पुराणोंके अनुसार अन्तिम दीर्घ सत्र महाराज अधिसीमके राज्यकालमें हुआ था। महाभारत यद्धके बाद धीरे-धीरे ऋषियोंका उच्छेद अरंभ हो गया था। शौनकने अपने कं प्रातिशाख्य और वृहद्देवतामें यास्कका उल्लेख किया है।५७ फलतः महाभारत, ऋक्प्रातिशाख्य, वृहदेवता आदिके अन्तः साक्ष्यसे पता चलता है कि यास्कका काल महाभारत के पूर्व का था। शतपथ ब्राह्मणमें वर्णित आचार्य परम्परासे पता चलता है कि यास्क पाराशर्य के वृद्ध गुरु थे। पाराशर्य के जातूकर्ण्य, जातूकर्ण्य के भारद्वाज, भारद्वाज के आसुरायण तथा यास्क आचार्य हैं। 'पाराशर्यो जातूकज्जिातूको भारद्वाजाद, भारद्वाजश्चासुरायणाच्च यास्काच्च। ५८ इस वर्णनसे स्पष्ट होता है कि यास्क पाराशर्यसे पूर्व के हैं तथा आसुरायणके समकालीन हैं। ८१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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