SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनमेजयके बाद के हैं। इन्हीं आधारों पर सत्यव्रत सामश्रमी जी ने ई.पू. २४०० वर्ष पाणिनि का काल माना। मंजुश्री मूलकल्प में लिखा है कि पाणिनि नामका माणव महापद्म नन्दका मित्र था।३६ बौद्ध भिक्षुओंके लिए प्रयुक्त होने वाले श्रमण शब्द का निर्देश पाणिनि के'कुमार श्रमणादिभि:' ३७ सूत्रमें प्राप्त होता है। बुद्धके समयमें मंखालिगोसाल नामक आचार्य के लिए प्रयुक्त 'मस्करी' शब्दकी सिद्धिमें पाणिनिने 'मस्कर मस्करिणो वेणुपरिबाजकयो : '३८ सूत्रका प्रयोग किया है। बेवर ९ का कथन है कि सिकन्दरके साथ युद्ध करने वाली क्षद्रुक मालवोंकी सेनाका उल्लेख पाणिनिने खण्डिकादिगण में पठित 'क्षुद्रक मालवात् सेना संज्ञायाम् ४० गणसूत्र में किया है। कीथ ४१ का कहना है कि अष्टाध्यायीमें यवन४२ शब्द पठित है। अतः सिकन्दरके आक्रमणके बाद ही पाणिनि हुए। राजशेखरकी काव्य मीमांसामें एक अनुश्रुति का उल्लेख है। उस अनुश्रुतिके अनुसार पाटलिपुत्र में होने वाली शास्त्रकार परीक्षा में उत्तीर्ण होकर पाणिनिने यशप्राप्त किया ।४३ पाटलिपुत्रकी स्थापना कुसुमपुर या पुष्पपुरके नामसे महाराज उदयीने की थी । ४४ उपर्युक्त आधार पर ही मैक्समूलर, ४५ वैवर, कीथ आदि विद्वान, पाणिनिका समय ३५० ई.पू. मानते हैं। विण्टर नित्स४७ भण्डारकर आदि विद्वान् पाणिनि का काल ५०० ई.पू. निर्धारित करते हैं। डा. वैल्भल्कर४८ इनको ७०० ई. पू. तक पहुंचाते हैं। सत्यव्रत सामश्रमी जी २४०० ई. पू. इनका समय निर्धारण करते हैं। युधिष्ठिर मीमांसक अन्य प्राप्त वर्णनों के आधार पर इनका समय लगभग २९०० ई.पू. मानते हैं।४९ यास्क पाणिनिसे प्राचीन हैं, जैसा कि पूर्व ही अनेक प्रमाणों से सिद्ध कर दिया गया है। पाणिनिके समय में संस्कृत भाषामें अधिक हास होने लगा था। लोग निरुक्त द्वारा प्रदत्त वैदिक विज्ञानको भूलते जा रहे थे। भाषा की बढ़ती हुई विकृतिको देखकर पाणिनिने सोचा कि यह प्रवाह शिक्षामें ह्रासके कारण स्वाभाविक है। अगर इसी प्रकारकी स्थिति रही तो भाषाका वर्तमान रूप एकदम बदल जाएगा। एक जगहकी भाषाको दूसरी जगहके लोगनहीं समझ सकेंगे। फलत: उसने स्वरूपकी स्थिरता के लिए व्याकरण शास्त्र की रचना की । अष्टाध्यायी इसीका परिणाम है। भाषाकी ऐसी स्थिति आनेमें यास्कसे पाणिनिके बीच लगभग २५० वर्ष लगे होंगे। अत: यास्कका समय पाणिनि से२५०वर्ष पहले माना जा सकता है। आज पाणिनि के समय को५००ई.पू. लोगों ने ८० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy