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________________ विभिन्न संकेतोंके आधार पर20 निघण्टु ग्रन्थोंका पता लग चुका है। मैकडोनेल के अनुसार यास्कके समयमें ऐसे पांच निघण्टुथे। महर्षि यास्कने अपने निरुक्तमें चौदह निरुक्तकारोंके मत का उल्लेख किया है । निरुक्तके टीकाकार दुर्गाचार्यने भी चौदह निरुक्तकारों की चर्चा अपनी वृत्तिमें की है' - 1.औपमन्वयव, 2. औदुम्बरायण, 3. वार्ष्यायणि, 4. गार्ग्य, 5. शाकपूणि, 6.और्णवाभ, 7. गालव, 8. तैटिकी, 9. क्रौष्टुकि, 10. कात्थक्य, 11. स्थौलाष्टीवि, 12. आग्रायण, 13. चर्मशिरा, 14. शतवलाक्ष्य (ख) आचार्य औपमन्यव . __ औपमन्यव शब्द "उपमन्योरपत्यमौपमन्यवः" के अनुसार औपमन्यव उपमन्यु के पुत्र थे। नाम शब्द तो रूढ़ माना जाता है, तथापि कुछ नाम अर्थकी दृष्टिसे गुणादि बोधक होते हैं। उपमन्यु शब्दका शाब्दिक अर्थ है जिसका क्रोध समाप्त हो गया है। अर्थात् उपमन्यु जो पहले क्रोधी थे तथा बादमें उनके क्रोध की आत्यन्तिक निवृत्ति हो गयी। औपमन्यव उपमन्यु गोत्रके अगर होंगे तो इनका सूत्र कात्यायन एवं इनकी शाखा माध्यन्दिनीथी। वे यजुर्वेदाध्यायी थे। निरुक्त में इनके सिद्धान्तोंके उद्धृत होनेके कारण इनके सिद्धान्त तथा समयादि के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्राप्त हो जाती है शौनकने भी वृहद्देवता में यास्क के साथ औपमन्यव का नाम लिया है। बौधायन श्रौतसूत्र में गुरू के रूप में एक औपमन्वयवी पुत्र का उल्लेख प्राप्त होता है। यास्क से औपमन्वय प्राचीन है, इसमें कोई संदेह नहीं । यास्क के ग्रन्थोंमें इनका उल्लेख होना उक्त तथ्य को पुष्ट करता है। किसी के सिद्धान्त की मान्यता अतिशीघ्र नहीं मिलती। साहित्यिक प्रसिद्धि देर से होती है | जब औपमन्यव के सभी मत यास्क द्वारा मान्य ही होते तो यास्क को अलग निरुक्त शास्त्र लिखने की आवश्यकता नहीं होती। वे निर्वचन के लिए पृथक सिद्धान्त की स्थापना नहीं करते । यास्क द्वारा उल्लिखित औपमन्यव के सिद्धान्तसे पता चलता है कि यास्क इनके सिद्धान्त के समर्थक थें जिन जिन स्थलों पर औपमन्यवके सिद्धान्तों का वर्णन है वे प्रायः यास्क द्वारा स्तुत्य हैं । कई स्थलों पर यास्कका अभिमत औपमन्यव के अभिमत से साम्य नहीं रखता है। औपमन्यवके सिद्धान्त या ग्रन्थ को ख्याति प्राप्त करने में लगभग 250 वर्ष लगे होंगे ।अतः इनका समय यास्कसे 250 वर्ष ५४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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