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________________ अर्थको पूर्ण रूपमें व्यक्त नहीं करते। व्याकरणके अनुसार-न+ हन् + यक् +टाप् प्रत्यय कर अघ्या शब्द बनाया जा सकता है।६३ (४०) पथ्या :- यह मेघका वाचक है। निरुक्तके अनुसार पन्था अन्तरिक्षं तन्निवासात्५८ पन्था अन्तरिक्षको कहते हैं उस अन्तरिक्षमें निवास करनेके कारण मेघको पथ्या कहा जाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें पथिन् + यत् प्रत्यय है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार पथिन् + यत्६४- इनो लोपः = पथ्य + टाप् = पथ्या शब्द बनाया जा सकता है। (४१) स्वस्ति :- इसका निर्वचन यास्कने तृतीय अध्यायमें दिया है। यह शब्द कल्याणका वाचक है। निरुक्तके तृतीय अध्याय के अनुसार सु + अस्ति से स्वस्ति माना गया है। अस्ति अभिपूजित का वाचक है। इस प्रकार स्वस्ति का अर्थ होगा कल्याण युक्त रहना। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (४२) अन :- वायु, शकट, मेघ। निरुक्तके अनुसार-अनो वायु: अनिते:५८ अनः वायुका वाचक है। यह शब्द अन् प्राणने धातुके योगसे निष्पन्न होता है। वायु प्राण धारण का प्रधान आधार है। शकट को भी अनः कहा जाता है यह उपमार्थक है- अनः शकटम् आनद्धमस्मिन् चीवरम्५८ अर्थात् इसमें चीवर (कपड़) बंधे रहते हैं इसके अनुसार अनः शब्दमें आनह बन्धने धातुका योग है अनितेर्वास्यात् जीवनकर्मण:५८ यह शब्द अन् प्राणने धातु (जीवनार्थक) के योग से निष्पन्न होता है। क्योंकि लोग गाड़ी को जीविका का आधार बनाते हैं।६५ मेघ भी अनः कहा जाता है- मेघोऽप्यन एतस्मादेव५८ जीवनका आधार मेघ भी है अत: मेघको भी अनः कहा जाता है। अन् धातुसे अन: मानना ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार रखता है।। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। व्याकरणके अनुसार अन् प्राणने धातुसे असुन् प्रत्यय कर अनस् शब्द बनाया जा सकता है।६६ अन शब्दके शकट वाचक निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि यास्कके समय कुछ लोग गाड़ी द्वारा व्यापार कर अपनी जीविका चलाते थे। (४३) रोदसी :- यह रूद्रकी पत्नीका वाचक है। रूद्र वायुके लिए यहां प्रयुक्त है। वायु की पत्नी विद्युत् को रोदसी कहा गया है। इसका मात्र अर्थात्मक महत्त्व है। लौकिक संस्कृतमें धु लोक एवं पृथ्वी लोकको रोदसी कहा जाता है। ४७४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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