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________________ (३६) इन्द्राणी :- इन्द्र की पत्नीको इन्द्राणी कहा गया है। यह स्त्री प्रत्ययान्त है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार इन्द्र + ङीष् (आनुक्) कर इन्द्राणी शब्द बनाया जा सकता है।५७ (३७) गौरी :- इसका अर्थ होता है- माध्यमिक वाक् (विद्युत)। निरुक्तके अनुसार गौरी रोचतेज़लति कर्मण:५८ गौरी शब्द ज्वलत्यर्थक् रूच् धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि वह तेजयुक्त है। लगता है यास्कने रूच् का वर्ण विपर्यय से चुस्गुस्-गौरी माननेका प्रयास किया है। इसका ध्वन्यात्मक आधार संगत नहीं है। अर्थात्मक संगति के लिए ही रूच् धातुकी कल्पना की गयी है। यास्कके अनुसार गौर वर्ण वाचक गौरी शब्द भी इसी निर्वचनसे माना जायगा- अयमपीतरो गौरी वर्ण एतस्मादेव प्रशस्यो मवति गौरवर्ण कृष्णवर्णकी अपेक्षा दीप्त होता है प्रशस्य होता है। उपर्युक्त निर्वचनसे ही यह भी माना जायगा। व्याकरणके अनुसार गुरी उद्यमने धातुसे घञ्६० प्रत्यय कर, गौर + अण् गौसडीप- गौरी शब्द बनाया जा सकता है। (३८) धेनु :- यह माध्यमिक वाक् (मेघ) का वाचक है। निरुक्तके अनुसार धेनुर्धयतेर्वा यह शब्द धेट पाने धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि इसका पान किया जाता है। (२) धिनोतेर्वा५८ इस शब्दमें धिवि प्रीणने धातुका योग है। यह पृथ्वी को तृप्त करता है। दोनों निर्वचन मेघके अर्थमें संगत हैं। निरुक्त सम्प्रदाय के अनुसार धेनुः माध्यमिक वाक् है तथा याज्ञिकोंके अनुसार धेनु धर्मधुक् है।६१ प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक आधार रखता है। लौकिक संस्कृतमें धेनुः शब्द नव प्रसूता गौ का वाचक है अर्थ सादृश्यके आधार पर ही यह शब्द नव प्रसूता गौ के लिए प्रयुक्त हुआ। व्याकरणके अनुसार धेट् पाने धातुसे नु:५२ प्रत्यय कर धेनुः शब्द बनाया जा सकता है। (३९) अज्या :- इसका अर्थ गाय तथा भैंस होता है। निरुक्तके अनुसार १- अध्याऽहन्तव्या मवति५८ अध्या शब्द में नञ्-अ+हन् हिंसा गत्योः धातु का योग है, क्योंकि वह अवध्या होती है। २- अघनीति वा५८ इस शब्दमें अघ + हन् धातुका योग है क्योंकि यह पापोंको दूर करने वाली होती है प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन गायकी पवित्रता एवं उसके पूज्य भावना को व्यक्त करता है। यास्क के उपर्युक्त दोनों निर्वचन मेघ के ४७३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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