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________________ नाम पिशतेर्चिपिशितं भवति" अर्थात् पेश ल्पका नाम है। यह शब्द पिश् अवयदे दीपनायां च धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह विकसित होता है या प्रकाशित (दीप्त) होता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार पिश् + घञ् प्रत्यय कर पेश: शब्द बनाया जा सकता है। (२२) भारती :- भारती आदित्य ज्योतिको कहते हैं। यह तीन देवियोंमें एक है। तीन देवियां मारती (ज्योति) इडा (अग्नि) तथा सरस्वती (विद्युत) हैं। निरुक्तके अनुसार भारती-भरत आदित्यस्तस्यमा :२२ अर्थात् भरत आदित्यको कहते हैं क्योंकि वे सभी प्राणियोंका भरणपोषण करते हैं। आदित्य जलसे भरण पोषणका कार्य करते हैं जल बननेके मुख्य कारणोंमें आदित्य प्रधान कारण हैं। फलत: भरतका अर्थ भरण वाला सूर्य माना गया है।४८ उस सूर्यकी दीप्तिको भारती कहेंगे। मृ-भरतभारती। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें भारती शब्द वाणी तथा सरस्वती के नाम के रूप में विशेषकर व्यवहृत होता है। उपर्युक्त निर्वचनसे ही इस भारती शब्दकी भी सिद्धि होगी, क्योंकि भारती सरस्वती ज्ञानसे सभी प्राणियों को पुष्ट करती है, ज्ञान सम्पन्न बनाती है। वैदिक भारती शब्दका लौकिक संस्कृत में अर्थ विस्तार देखा जाता है। कर्म सादृश्य ही इसका मूल आधार है। व्याकरणके अनुसार भृ + अतच् डीप् प्रत्यय कर भारती शब्द बनाया जा सकता है। (२३) त्वष्टा :- आप्री देवताओं में एक का नाम त्वष्टा भी है। आप्री देवता पृथ्वी स्थानीय हैं। त्वष्टाका अर्थ होता है शीघ्र फैलने वाला। निरुक्त के अनुसार त्वष्टा तूर्णमश्नुत इति नैरुक्ता:१२ अर्थात् निरुक्त सम्प्रदाय वालों के अनुसार तूर्ण+ अश् व्याप्ती धातुके योगसे त्वष्टा शब्द निष्पन्न होता है क्योंकि त्वष्टा शीघ्र फैलने वाले होते हैं। (२) त्विषेर्वास्याद् दीप्ति कर्मण:२२ अर्थात् यह शब्द दीप्त्यर्थक त्विष् धातुके योगसे निष्पन्न होता है- त्विष् त्वप्ट-त्वष्टा। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा कान्तिसे यक्त। यह कान्तिमान अग्निके अर्थ में भी संगत है तथा आदेिवता के अर्थ में भी। (३) त्वक्षतेर्वा स्यात् करोति कर्मण:२२अर्थात् करना अर्थ रखने वाली त्वक्ष् धातुके योग से यह शब्द निष्पन्न होता है-त्वक्ष-त्वष्टा। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा करने वाला या सामर्थ्यवान्।त्विष् धातुसे इसका निर्वचन मानने पर ध्वन्यात्मक आधार संगत होगा। अर्थात्मक दृष्टिसे सभी निर्वचन उपयुक्त हैं। द्वितीय निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से संगत है।लौकिक संस्कृतमें त्वष्टाका प्रयोग देवशिल्पी,बढ़ई तथा ४१८ :व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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