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________________ (2.) " अशीर्यत इति शरीरम् "2 इसमें शरीर शब्दका निर्वचन हुआ है। शरीर शब्दमें शृ हिंसायां धातु का योग है जो अशीर्यत् क्रिया पदसे स्पष्ट हो जाता है। यास्क भी शरीर शब्दके निर्वचनमें शृ हिंसायां धातुका योग मानते हैं।' आरण्यकका यह निर्वचन वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है । भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जायेगा । (3.) “स इरामयो यदिरामयस्तस्माद्धिरण्यमयः । "उत्थापयति इति उक्थम्”” । “छादयति येन तत् छदः " । "अत्रायत इति अत्रि: इन उद्धरणोंमें हिरण्मयः, उक्थम्, छदः तथा अत्रिः शब्दोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं। हिरण्यमय शब्दको इरामयसे निष्पन्न माना गया है। उक्थम् में उत् उपसर्गपूर्वक स्था धातुका योग है छदः शब्द छदिरावरणे धातुसे निष्पन्न है। अत्रिमें अत् या अद् + त्रि का दर्शन होता है। यद्यपि इन निर्वचनोंमें ध्वन्यात्मक संगति पूर्ण उपयुक्त नही है फिर भी इन सबका भाषा वैज्ञानिक महत्त्व है । (4.) देवानां वाम: वामदेवः । गृत्सः (प्राणः) चासौ मदः (अपानः ) गृत्समदः । यहां वामदेव तथा गृत्समदके निर्वचन प्राप्त होते हैं। इन निर्वचनोंमें समासकी प्रक्रियाका आश्रयण है। शब्दोंके इतिहास अन्वेषणका प्रायः सार्थक प्रयास किया गया है । (5.) “प्रजा वै वाजस्ता एष विभर्ति भरद्वाजः । यहां भरद्वाज शब्दका निर्वचन प्राप्त होता हैं। इसमें समासकी प्रक्रिया स्पष्ट है। प्रजा ही वाज कहलाती है तथा प्रजाओंका धारण करने वाला भारद्वाज । यहां भृधारणपोषणयोः धातुके योगसे निष्पन्न विभर्ति क्रियाका भर- - भृ-भार पूर्वपदस्थ हैं तथा उत्तर पद बाज प्रजाका वाचक है । (6) "एभ्यः सर्वेभ्यो भूतेभ्योऽर्चते इति ऋक् * 10 ε इसमें ऋक् शब्दका निर्वचन हुआ है। इस शब्द में पूजार्थक अच् तुका योग है । यास्क भी ऋक् शब्दको अर्च् पूजायां धातुके योगसे ही निष्पन्न मानते है । यह निर्वचन भाषा वैज्ञानिक महत्त्वसे युक्त है। ऋचाओं की धार्मिक मान्यताका स्पष्टीकरण इससे हो जाता है। २. : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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