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________________ उसे टीकाकारों के अनुसार अतिपरोक्ष वृत्ति कहा गया है।' यास्क के निरूक्त में इन तीनों वृत्तियों के दर्शन होते हैं । ब्राह्मण ग्रन्थों के निर्वचनों का स्वरूप दर्शन :1. “आञजन्ति एतेन इति आज्यम् ।' यहां आज्यम् शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है। आ+अधातुके योग से आज्य शब्दका निर्वचन स्पष्ट हो जाता है । यह परोक्षवृत्याश्रित निर्वचन है। 2. “यदब्रुवन्मेदं प्रजापतेरेतो दुषदिति तन्मादुषमभवत् । तन्मादुषस्य मादुषत्वम् । मादुषं ह वै नामैतद् यन्मानुषं सन् मानुषमित्याचक्षते परोक्षेण । इस उद्धरणमें मादुष शब्द एवं मादुषसे निष्पन्न मानुष शब्द प्रतिपादित है। मादुषतसे मानुष बना – प्रजापतिका वीर्य दुषित न हो यह मादुषत् शब्द है मादुष, यही मादुषका मादुषत्व है। पुनः परोक्षरूप में मादुष ही मानुष कहा गया। मादुषके द का न में परिवर्तन हुआ ! मा–दुषतसे मादुष प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है तथा मादुषसे मानुष परोक्ष वृत्याश्रित । वस्तुतः मादुषत् को प्रत्यक्षवृत्तिका, मादुषको परोक्ष वृत्तिका तथा मानुषको अतिपरोक्षवृत्तिका समझना चाहिए। 3. “स वा एषोऽग्निरेव यदग्निष्टोमः । तं यदुस्तुवंस्तस्मादग्निस्तोमः तमग्निस्तोमं सन्तमग्निष्टोम इत्याचक्षते परोक्षेण ।"4 यहां अग्निस्तोम तथा अग्निष्टोम विवेचित है। स्तु धातुसे स्तोम तथा अग्नि-स्तोमसे अग्निष्टोम स्पष्ट है, तथा वही अग्नि स्तोम अग्निष्टोम कहलाया। इसमें स्तु धातुसे स्तोम प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है तथा अग्निस्तोमसे अग्निष्टोम परोक्षवृत्याश्रित। 4. “विराजति इति विराट" ।' यहां विराट् शब्द प्रतिपादित है। विराट् शब्दमें वि+राज्धातुका योग है। यह प्रत्यक्षवृत्याश्रित निर्वचन है। 5. "तज्जाया जाया भवति यदस्यां जायते पुनः आभूतिरेषा भूति/जमेतन्निधीयते ।। इस उद्धरणमें जाया शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है । जायाका जायते २४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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