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________________ यास्क ने इसका निर्वचन प्रस्तुत नहीं किया है। मात्र यह अन्नका वाचक है या अन्न नाम है ऐसा अर्थ देकर छोड़ दिया है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे निर्वचन नहीं माना जायगा। निर्वचन प्रक्रियाके अनुसार भी यह निर्वचन नहीं है। लोकमें प्रयुक्त चना अन्न विशेषका आधार यही चन शब्द मालूम पड़ता है। इस शब्दका आज अर्थ संकोच माना जायगा। व्याकरणके अनुसार चायृ पूजादौ + असुन् प्रत्यय कर (चात् नुट्) चनः शब्द बनाया जा सकता है।८६ (१०४) पचता :- यह आख्यात स्वरूप पचति का नाम रूप में प्रयुक्त हुआ है। निरुक्तके अनुसार-पचतिर्नामीभूतः ५२ अर्थात् यह पच् धातुका नाम भूत शब्द है। इसका अर्थ है पक: (पका हुआ)। प्रकरणके अनुसार तीनों वचनों में यह प्रयुक्त होता हैं पचता- पक्वम्, पक्वौ, पक्वानि । यास्क इस शब्दका मात्र अर्थ ही स्पष्ट करते हैं तथापि इस शब्दमें पच् धातुका योग स्पष्ट हो जाता है- पच् + क्त+पचतम् +सु का आ- पचता। इसके अनुसार इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार-पच् + अतच्- पचत् + आ पचता शब्द बनाया जा सकता है। = (१०५) शुरूध :- यह जलका वाचक है। निरुक्तके अनुसार शुरूध आपो भवन्ति। शुचं संरुन्धन्ति।५२ अर्थात् यह शुच् (शोक, प्रकाश, उष्णता) को रोक लेते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें शुच् + रूध् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । (१०६) अमिन :- यह महान् का वाचक है। निरुक्त के अनुसार १ - अमिनो अमित मात्रो महान् भवति५२ अर्थात् यह अपरिमित मात्रा वाला होता है जिसे महान् . कहा जाता है। अमिता मात्रा यस्य सः अमिनः इसके अनुसार नञ् - अ + म + क्त= अमिनः। २-अभ्यमितोवा१ अर्थात् जिसकी हिंसान की जा सके अहिंसित। इसके अनुसार अ + मीञ् हिंसायाम् + क्त = अमिनः शब्द है । इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार इसे अ + मि क्षेपे + नङ् प्रत्यय कर अमिन: शब्द बनाया जा सकता है। (१०७) जज्झतीः- इसका अर्थ होता है- जल । निरुक्तके अनुसार-जज्झती: आपो भवन्ति। शब्द कारिण्यः ५२ अर्थात् यह शब्द जज्झ (शब्द करना) से निष्पन्न है। वर्षा होनेके समय जज्झ शब्द होता हैअत : जज्झती को जल कहा जाता है। शब्दानुकृतिके ३६४: व्युत्पत्ति और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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