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________________ इसके अनुसार अमि + अञ्च् गतौ पूजायां धातुका योग है। प्रथम निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचनका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार अमा + अञ्च् धातुसे क्विप् प्रत्यय कर अम्यक् शब्द बनाया जा सकता है। (१००) यादृश्मिन् :- इसका अर्थ होता है जिस प्रकारके काममें। निरुक्तके अनुसार यादृश्मिन् यादृशै५२ अर्थात् यह अनवगत संसारका वाचक है तथा पूर्ण अस्पष्ट है। यह सप्तम्यन्त पद है। यादृशके अर्थमें इसका प्रयोग होता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे अपूर्ण माना जायगा। व्याकरणके अनुसार-यत् + दृश्-यादृशः + सप्तमी एकवचन -यादृश्मिन् बनाया जा सकता है। (१०१) जारयायि :- इसका अर्थ होता है-उत्पन्न हुआ। निरुक्तके अनुसार जारयायि अजायि५२ इसके अनुसार इसमें जन् प्रादुर्भावे धातुका योग माना जायगा। यास्क मात्र इसका अर्थ ही स्पष्ट करते हैं। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे अपूर्ण माना जायगा। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। इस निर्वचन का मात्र अर्थात्मक महत्त्व है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इसका अर्थ शरीर किया है- जारं जरावस्था यातुं शीलमस्य तच्छरीरम्८४ व्याकरणके अनुसार जार + या + णिनि८५ प्रत्यय जारयायि शब्द बनाया जा सकता है। (१०२) अग्रिया :- इसका अर्थ होता है आगे बढ़ना, प्रधान होना। निरुक्तके अनुसार १- अग्रिया अग्रगमनेनेति वा५२ अर्थात् आगे जानेके कारण। इसके अनुसार इसमें अग्र +या प्रापणे धातुका योग है। २- अग्रगरणेनेति वा५२ अर्थात अग्र निगरणके कारण अग्रिया कहा जाता है। इसके अनुसार अग्र + गृ निगरणे धातुका योग है। ३. अग्रसम्पादिन इति वा५२ अर्थात् अग्र सेम्पादनं करनेके कारण अग्रिया कहलाता है। इसके अनुसार- अग्र + या (कार्य सम्पादन) का योग है। ४. अपि वा अग्रम् इत्येतदनर्थकमुपबन्धमाददीत५२ अर्थात् अग्र शब्दमें या उपबंध है जो अनर्थक है या स्वार्थ में ही प्रयुक्त है। अग्र+ या =अग्रियाप्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार अग्र + घ=अग्रिय- अग्रिया शब्द बनाया जा सकता है। (१०३) चन :- यह अन्नका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-चन इत्यन्ननाम५२ ३६३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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