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________________ धातुसे इञ् +डीष् प्रत्यय कर वाणी: शब्द बनाया जा सकता है। (१६) पुरुहूतम् :- इसका अर्थ होता है जल। निरुक्तके अनुसार पुरुहूतं बहुभिराहूतमुदकं भवति१ अर्थात् यह जल बहुत लोगोंके द्वारा आहूत (अभीप्सित) होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें दो पद खण्ड हैं-पुरू +हूतम्। पुरू वहु का वाचक है तथा हूतम् हूञ् स्पर्धाया शब्दे च धातुका वाचक है-पुरू + (य् +क्त-पुरुहूतम्। यह सामासिक शब्द है पुरुभिः हूतम् पुरुहूतम्। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। पुरुहूतका अर्थ इन्द्र भी होता है।१२ इन्द्र भी यज्ञोंमें बहुतोंके द्वारा बुलाये जाते हैं। व्याकरणके अनुसार पुरू + ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च धातुसे क्त प्रत्यय कर पुरुहूतः शब्द बनाया जा सकता है। (१७) मूलम् :- यह जड़का वाचक है। निरुक्तके अनुसार मूलं मोचनाद्वा अर्थात् इसे उखाड़ा जाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें मुच् मोक्षणे धातुका योग है। २ - 'मोषणद्वा' अर्थात् यह मिट्टीमें छिपी रहती है या यह पृथ्वीसे रस ग्रहण करती है। इसके अनुसार इस शब्दमें मुष्स्तेये धातुका योग है। ३- मोहनाद्वा अर्थात् यह काफी दूर तक मिट्टीमें गयी होती है तथा पृथिवी से रस चूसती है अत: सब क्रियाओंसे यह व्यक्तियोंको चकित कर देती है मूढ़ बना देती है। इसके अनुसार इस शब्दमें मुह वैचित्ये धातुका योग है। ध्वन्यात्मक आधार सभी निर्वचनों के अपूर्ण है। अर्थात्मक आधार सभीके संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन निर्वचनोंको उपयुक्त नहीं माना . जायगा।व्याकरणके अनुसार मूल् धातुसे क प्रत्ययकर मूलम् शब्द बनायाजा सकताहै। (१८) अग्रम् :- इसका अर्थ होता है अगला। निरुक्तके अनुसार अग्रमामतं भवति१ अर्थात् यह आया होता है। इसके अनुसार इस शब्द में आ +गम् धातुका योग है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे यह निर्वचन किंचित् शिथिल है। अर्थात्मक आधार इसका उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार अगि कुटिलायां गतौ धातुसे रक् प्रत्यय कर अग्रम् शब्द बनाया जा सकता है। (१९) सललूकम् :- इसका अर्थ होता है- पापी, आवारा घूमने वाला। १. सललूकं संलुब्धं भवति पापकमिति नैरुक्ता:१ अर्थात् नैरुक्तके अनुसार सललूक का अर्थ है पापी। सललूक संलुब्धको कहते हैं इसके अनुसार इस शब्दमें सम् + लुभ् विमोहने धातुका योग है सम्+ लुभ्- (यङलुक) + क्त +कन् =संललुब्धकम्- सललूकम् (इसमें वर्ण लोप आदि होकर यह शब्द निष्पन्न हुआ) २- सर रूकं वा स्यात् ३४०: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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