SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) अलातृणः- यह मेघका वाचक है। निरुक्त्तके अनुसार-अलातृणोऽलमातर्दनो मेघो१ अर्थात् जिसकी पर्याप्त हिंसा हो सके। इसके अनुसार इस शब्दमें अलम् +आ + तृद् हिंसानादरयोः धातुका योग है। अलम् के लिए वैदिक शब्द अरम् प्राप्त होता है। र वर्णका ल होकर अरम् शब्द ही अलम् हो गया है। इस निर्वचनका प्रकृति एवं विकार स्वर एवं संस्कार अस्पष्ट है। इसमें अर्थ सादृश्यका आधार अपनाया गया है।९ अलम्+ आ+ तृद् से अलातृण मानने में ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त रहता है। अत: भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार अलम्+ आ+ तृद् हिंसानादरयोः धातु से घञ् प्रत्यय कर इसे बनाया जा सकता है। (१३) बल :- यह मेघका वाचक है। निरुक्तके अनुसार मेघो बलो वृणोते:१ अर्थात् बलः शब्द वृञ् (वरणे) आच्छादने धातुके योगसे निष्पन्न होता है। यह जल को आच्छादित किए रखता है। वृञ् +अप-वृ + अप् = वर: -वल:। र वर्णका ल में परिवर्तन इस निर्वचनमें हुआ है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार वल् + अच्१० प्रत्यय कर बल: शब्द बनाया जा सकता है। (१४) व्रज :- इसका अर्थ होता है मेघा निरुक्तके अनुसार-व्रजो वजन्त्यन्तरिक्षेप अर्थात् वह अन्तरिक्षमें गमन करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें व्रज गमने धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें यह गोष्ठ, मार्ग एवं समूहके . अर्थमें प्रयुक्त होता है।११ व्रजका लौकिक संस्कृतमें अर्थ विस्तार माना जायगा। बज् गतौ धातुका सम्बन्ध सभी अर्थों में विद्यमान है।च्याकरणके अनुसार व्रज् गतौ धातुसे अच्३ प्रत्यय कर व्रजः शब्द बनाया जा सकता है। (१५) वाणी :- यह अनेकार्थक है। यहां जल एवं वचनके अर्थमें प्रयुक्त है। निरुक्त के अनुसार १-वाणी:आपो वा-वहनात्१ अर्थात् इसको सभी लोग ग्रहण करते हैं,वहनकरते हैं।इसके अनुसारइस शब्दमें वह प्रापणे धातुका योग है।र-वाचोवा वदनात् अर्थात् वाणीका अर्थ वचन होता है क्योंकि वाणी बोली जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें वद् व्यक्तायां वाचि धातुका योग है। ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे दोनों निर्वचन अपूर्ण हैं। अर्थात्मक आधार दोनों निर्वचनोंके पुष्ट हैं।। वह धातुसे वाणी जलके अर्थको तथा वद् धातुसे वाणी वचन अर्थको व्यक्त करती है। व्याकरणके अनुसार वण् शब्दे ३३९: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy