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________________ कमुकान्तौ से कम् +क्त - कान्त · कान्तक - काणुक - काणुका। २. कणे धात इतिवा१ अर्थात् इच्छा भर पान करने वाला। इसके अनुसार काणुका शब्दमें कण ह हन् धातुका योग है - कणे धातः- काणुकः ३- कणे हत इतिवा१ अर्थात् यह कणे घात:का ही अर्थ रखने वाला है। इसमें भी कण + हन् धातुका योग है। यास्कने विभिन्न अर्थोकी उपलब्धिके लिये इतने निर्वचन प्रस्तुत किये। सभी निर्वचनॊका अर्थात्मक महत्त्व है। ध्वन्यात्मक आधार किसीभी निर्वचनका उपयुक्त नहीं है। भाषा विज्ञान के अनुसार इन्हें उपयुक्त नहीं माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार कण् गतौ धातुसे उकञ् प्रत्यय कर काणुक - काणुका शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें इस शब्दका प्रयोग प्रायः नहीं प्राप्त होता। (५४) अध्रिगु :- यह अनेकार्थक है। निरुक्तमें कई अर्थोंमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते हैं। मन्त्रके अर्थमें अधिगु:का प्रयोग भी होता है। अधिगु : मन्त्रो भवति गव्यधिकृतत्वात्५८ अर्थात् वेदवाणीमें अधिकृत होनेके कारण अधिगु: कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें अधि: गो का योग है। अधि +गाs =अधिगु : अधिगु:। २. अपि वा प्रशासनमेवाभिप्रेतं स्यात्। तच्छब्दत्वात्५८ अर्थात् अधिगु का अर्थ प्रशासक या राजा भी होता है क्योंकि प्रशासन उसे अभिप्रेत रहता है। उसी शब्दसे इस अर्थमें भी निर्वचन मान लिया जाएगा-गवि अधिकृतः भूमौ अधिकृतः। इसमें भी अधिक गो का योग है। अधिगु:का अर्थ अग्नि भी होता है। ३. अग्निरप्यधिगुरूच्यते। अधृतगमन:१ अर्थात् यह बाधा रहित गमनवाला होता है। इसके अनुसार (न) अ +धृ +गम् = का योग होकर अधिगुः शब्द बना है। इन्द्र को भी अधिगुः कहा जाता है. ४. इन्द्रोऽप्यधिगुरूच्यते अधिगव :७४ अर्थात् वह सदा गमनशील होता है इसलिए इन्द्रभी अधिगु कहे जाते हैं। इसके अनुसार अधिगुः शब्द में अधि र गम् धातुका योग है। तृतीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। शेष निर्वचनों का अर्थात्मक महत्व है। डा. वर्मा५ इन निर्वचनोंको अस्पष्ट मानते हैं। इनका कहना हैकि यह निर्वचन धिगु शब्दके कल्पित प्रयोग पर आधारित है। अवेस्तामें द्विगु- Drigu शब्द बलहीनका वाचक है। अत: अधिगु:का अर्थ होगा बलसम्पन्न, वलहीनतासे रहित। नाइसरने भी अपने ऋग्वेद कोषमें घिगुको बलहीन की माना है। यास्कके निर्वचनों में तृतीयके अतिरिक्त सभी निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टि से अपूर्ण हैं। व्याकरणके अनुसार अधि +गम् +कुः प्रत्यय कर अधिगुः शब्द बनाया जा सकता है। ३०७: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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