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________________ रूढ़ है। निरुक्त के अनुसार-श्मनि श्रितं भवति१ अर्थात् यह शरीर पर आश्रित होता है। इस निर्वचन के अनुसार इसमें श्म + श्रि सेवायां धातु का योग है। श्म शरीरका वाचक है तथा श्रु श्रिञ् सेवायां धातुका वाचक। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे यह निर्वचन युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। डा. वर्माका कहना है कि श्रि धातु स्थित इ का उ में परिवर्तन भाषा वैज्ञानिक आधार पर उपयुक्त प्रतीत नहीं होता।१४ आज कल श्मश्रुका प्रयोग केवल मूंछ के लिए होता है। यह रूढ़यर्थक है। व्याकरणके अनुसार श्म +श्रियं सेवायां धातु से ड्:१५ प्रत्यय कर श्मश्रु शब्द बनाया जा सकता है। श्मश्रु शब्दके अर्थ में आज अर्थसंकोच हो गया है। (११) लोम :- इसका अर्थ रोम होता है। निरुक्त के अनुसार लनाते अर्थात् इसका छेदन किया जाता है। इसके अनुसार लोम शब्द लञ् छेदन से निष्पन्न होता है। (२) लीयतेर्वा अर्थात् यह शरीर पर लगा रहता है। इसके अनुसार इस शब्द में लीङ आश्लेषे धातुका योग है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक आधारसे युक्त है। इसका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपर्युक्त नहीं। भाषा विज्ञानके अनुसार प्रथम निर्वचन ही उपयुक्त है। लोम शब्दके उपर्युक्त निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि यास्कके समयमें लोग केश कटवाते थे। व्याकरण के अनुसार लुञ् छेदने धातु से मनिन्१६ प्रत्यय कर लोमन् लोम बनाया जा सकता है। (१२) जामि :- इसका अर्थ कन्या होता है। निरुक्तके अनुसार (१) जामिरन्येऽस्यां जनयन्ति' अर्थात् इसमें दूसरे व्यक्ति सन्तान पैदा करते हैं। इसके अनुसार जामिः शब्द में जन् धातुका योग है। (२) जमतेर्वा स्याद्गति कर्मणः निर्गमन प्राया भवति' अर्थात् यह शब्द गत्यर्थक जम् धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि वह प्राय: निकलने वाली या पितृ कुलसे अपने पतिकुलमें जाने वाली होती है। यास्कका द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। प्रथम निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। डा. वर्मा इसे अविकसित भाषा विज्ञानका परिणाम मानते हैं।१७ व्याकरणके अनुसार यह जै क्षये+मि:१८ प्रत्यय या जमु अदने + इण् प्रत्यय या इ१९ प्रत्यय करने पर बनता है। लौकिक संस्कृतमें जामि शब्द वहन तथा कुलस्त्रीके अर्थमें प्रयुक्त होता है।२० वैदिक जामि शब्दका लौकिक संस्कृतमें अर्थान्तर की उपलब्धि होती है। (१३) मनुष्य : मनुष्य मानवका वाचक है। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते हैं। (१) मत्वा कर्माणि सीव्यति२१ अर्थात् वह सोंच समझ कर काम २०२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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