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________________ द्वितीय अध्यायके प्रथम पादमें निर्वचनकी प्रक्रिया पर विचार हुआ है। इसमें निर्वचनके सिद्धान्त वैज्ञानिक दृष्टिसे विवेचित हैं। इसी पादमें शिष्य लक्षणमें शिष्योंके गुणावगुण पर विचार हुआ है। द्वितीय अध्यायके द्वितीय पादके आरम्भ में अथ निर्वचनम् का उल्लेख मिलता है। इस उल्लेखसे लगता है कि यह निर्वचन का प्रारंभिक स्थल है। यद्यपि निरुक्तके प्रथम अध्यायमें ही पृथिवी आदि कुछ प्रसिद्ध शब्दोंका निर्वचन प्राप्त होता है लेकिन निर्वचनकी प्रचुरता यहीं से प्रारम्भ होती है। इस अध्यायमें नैघण्टुक काण्डके प्रथम अध्यायकी व्याख्या प्रस्तुतकी गयी है । व्याख्या क्रममें सम्बद्ध इतिहास एवं सम्बादोंका भी उपस्थापन हुआ है। तृतीय अध्यायमें निघण्टुके द्वितीय एवं तृतीय अध्यायमें आये हुए शब्दों का निर्वचन प्रस्तुत किया गया है। औरस पुत्रकी श्रेष्ठता एवं अन्य पुत्रोंके ग्रहण की निन्दा, पुत्र एवं पुत्रीके अधिकारका चिन्तन, भ्रातृहीन नारीका उत्तराधिकार, उपमा विवेचन एवं उसके प्रकार भी इसी अध्यायमें वर्णित हैं। इस अध्यायमें प्रसंगत: कुछ उपाख्यानों का भी उल्लेख हुआ है। इन उपाख्यानोंसे तत्कालीन समाज का चित्र बहुत सुन्दर रूपमें उपस्थित होता है. निरुक्तके चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ अध्यायोंमें निघण्टुके चतुर्थ अध्यायकी व्याख्या है। इसे नैगम काण्ड कहा जाता है। निघण्टुके चतुर्थ अध्यायमें स्वतंत्र पदों के संग्रह है जो अनवगत संस्कार वाले हैं, तथा इसे ऐकपदिक काण्ड भी कहा जाता है। निरुक्तके सप्तम अध्यायसे दैवत काण्ड प्रारम्भ हो जाता है। ज्ञातव्य है निघण्टुका पंचम अध्याय दैवत काण्ड है। इस सप्तम अध्यायमें ऋचाओंकी विविधता प्रधानभूत तीन देवताओंकी पुष्टि एवं देवताओंका आकार चिन्तन आदि वर्णित है। अष्टम अध्यायमें भी निघण्टुके दैवत काण्डके ही शब्द विवेचित हैं। इसमें इन्द्र, अग्नि, वनस्पति आदिके निर्वचन हुए हैं। नवम अध्यायमें पृथ्वी स्थानीय देवताओंके निर्वचन एवं वर्णन प्राप्त होते हैं। दशम एवं एकादश अध्याय में मध्यम स्थानीय देवताओंका वर्णन है। द्वादश अध्याय स्थानीय देवताओंका निर्वचन एवं वर्णन प्रस्तुत करता है। त्रयोदश अध्यायमें देवताओंकी स्तुतियां, यज्ञ का वर्णन, ऊर्ध्व मार्गगति, आत्मा, महत् आदिका वर्णन उपलब्ध होता है। चतुर्दश अध्यायमें पदार्थ विवेचनके साथ मानव सृष्टिका क्रम वर्णित है। गर्भाधान प्रकारसे लेकर उत्पत्तिके क्रमिक स्वरूपोंका वर्णन वैज्ञानिक ढंगसे किया गया है। २ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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