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________________ प्रस्तावना 69 और आश्विन नामक वर्ष में अत्यन्त वर्षा होती है।) तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर दोनों वर्णनों में बहुत अन्तर है । विषय एक होने पर भी फल-कथन करने की शैली भिन्न है। इसी अध्याय में गुरु की विभिन्न गतियों का फलादेश भी कहा गया है। बुधचार भ० सं० के 18वें अध्याय और वा० सं० के 7वें अध्याय में आया है। भ० सं० के 18वें अध्याय के द्वितीय श्लोक में बुध की सौम्या, विमिश्रा, संक्षिप्ता, तीव्रा, घोरा, दुर्गा और पापा ये सात प्रकार की गतियां बतलायी गयी हैं। वा० सं० के 7वें श्लोक में बुध की प्रकृता, विमिश्रा, संक्षिप्ता, तीक्ष्णा, योगान्ता, घोरा और पापा इन गतियों का उल्लेख किया है । तुलना करने से ज्ञात होता है कि भ० सं० में जिसे सौम्या कहा है, उसी को वा० सं० में प्रकृता; जिसे भ० सं० में तीव्रा कहा है, उसे वा० सं० में तीक्ष्णा; भ० सं० में जिसे दुर्गा कहा है, उसे वा० सं० में योगान्ता कहा है। इन गतियों के फलादेशों में भी अन्तर है। वाराहमिहिर ने सभी प्रकार की गतियों की दिन संख्या भी बतलायी है, जब कि भ० सं० इस विषय पर मौन है । अस्त, उदय और वक्री आदि का कथन भ० सं० में कुछ अधिक है, जब कि वा० सं० में नाम मात्र को है। अंगारकचार, राहुचार, केतुचार, सूर्यचार और चन्द्रचार विषयक वर्णनों की दोनों ग्रन्थों में बहुत कुछ समता है। कतिपय श्लोकों के भाव ज्यों-के-त्यों मिलते हैं। __भद्रबाहुसंहिता का अंगारकचार विस्तृत है, वाराहीसंहिता का संक्षिप्त । वर्णन प्रक्रिया में भी दोनों में अन्तर है । भद्रबाहुसंहिता (अ० 19; श्लोक 11) में मंगल के वक्री का कथन करते हुए कहा है कि मंगल के उष्ण, शोषमुख, व्याल, लोहित और लोहमुद्गर ये पाँच प्रधान वक्र हैं । ये वक्र मंगल के उदय नक्षत्रों की अपेक्षा से बताये गये हैं । वाराही संहिता में (अ० 6 श्लो० 1-5) उष्ण; अश्रुमुख, व्याल, रुधिरानन और असिमुसल इन वक्रों का उल्लेख किया है। इन वक्रों में पहले और तीसरे वक्र के नाम दोनों में एक हैं, शेष नाम भिन्न हैं। दूसरी बात यह है कि भ० सं० में सभी वक्र उदय नक्षत्र के अनुसार वर्णित हैं, किन्तु वाराही संहिता में व्याल, रुधिरानन और असिमुसल को अस्त नक्षत्रों के अनुसार बताया गया है। भ० सं० (19; 25-34) में कहा गया है कि कृत्तिकादि सात नक्षत्रों में मंगल गमन करे तो कष्ट; माघादि सात नक्षत्रों में विचरण करे तो भय, अनुराधादि सात नक्षत्रों में विचरण करे तो अनीति; धनिष्ठादि सात नक्षत्रों में विचरण करे तो निन्दित फल होता है। वा० सं० (6; 11-12) में बताया गया है कि रोहिणी, श्रवण, मूल, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद या ज्येष्ठा नक्षत्र में मंगल का विचरण हो तो मेघों का नाश एवं श्रवण, मघा, पुनर्वसु, मूल, हस्त, पूर्वाभाद्रपद, अश्विनी, विशाखा और रोहिणी नक्षत्र में विचरण करता है
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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