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________________ परिशिष्टाध्यायः 463 यदि किसी के दोनों सुकुमार हाथ अकारण ही कठोर और कृष्ण हो जायं तथा अंगुलियाँ सीधी न हों तो उसे अरिष्ट समझना चाहिए अर्थात् उक्त लक्षण वाले व्यक्ति का मरण सात दिन में ही होता है ।।13।। स्तब्धं लोचनयोर्यग्मं विवर्णा काष्ठवत्तनः। प्रस्वेदो यस्य भालस्थ: विकृतं वदनं तथा ॥14॥ जिसके दोनों नेत्र स्तब्ध अर्थात् विकृत हो जायँ तथा शरीर विकृत वर्ण और काठ के समान कठोर हो जाय और मस्तक पर अधिक पसीना आये तथा मुख विकृत हो जाय तो अरिष्ट समझना चाहिए अर्थात् सात दिनों में मृत्यु होती है ।।14।। निनिमित्तो मुखे हासश्चक्षुभ्यां जलबिन्दवः । अहोरात्रं स्रवन्त्येव नखरोमाणि यान्ति च ॥15॥ बिना किसी कारण के अधिक हंसी आये, आँखों में आँसू व्याप्त रहें और नख तथा रोम के छिद्रों से पसीना निकलता हो तो सात दिन में मत्य समझनी चाहिए ॥15॥ सुकृष्णा दशना यस्य न घोषाकर्णनं पनः । एतैश्चिह्नस्तु प्रत्येकं तस्यायुदिनसप्तकम् ॥16॥ जिसके दाँत काले हो जायं तथा कर्णछिद्रों को बन्द करने पर भीतर से होने वाली आवाज सुनाई न पड़े तो सात दिन की आयु समझनी चाहिए ॥16॥ निर्गच्छंस्तुट्यते वायुस्तस्य पक्षकजीवनम् ।। नेत्रयोर्मीलनाज्ज्योतिरदृष्टौ दिनसप्तकम् ॥17॥ यदि शरीर से निकलती हुई वायु बीच में टूट-सी जाय तो पन्द्रह दिन की आयु शेष समझनी चाहिए अथवा बाहर निकलने में श्वास तेज हो तो पन्द्रह दिन की आयु समझनी चाहिए। दोनों नेत्रों के अग्रभाग को थोड़ा-सा बन्द करने पर उनमें से जो ज्योति निकलती है यदि वह ज्योति निकलती हुई दिखलाई न पड़े तो सात दिन की आयु समझनी चाहिए ।।17।। भ्र मध्ये नासिका जिह्वादर्शने च यथाक्रमम। नवव्येकदिनान्येव सरोगी जीवति ध्रवम् ॥18॥ यदि भौंह के मध्य भाग को न देख सके तो नौ दिन, नासिका न दिखलाई पड़े तो तीन दिन और जिह्वा न दिखलाई पड़े तो एक दिन की आयु होती है, अर्थात् उस रोगी की पूर्वोक्त दिनों में मृत्यु हो जाती है ॥18॥
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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