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________________ 50 भद्रबाहुसंहिता अयणाणं संबंधे रविसोमाणं तु वे हि य जगम्मि । नं हवइ भागलद्धं वइहया तत्तिया होन्ति । बावत्तपरीयमाणे फलरासी इच्छित्तेउ जुगभे ए। इच्छियवइवायपि य इदं आऊण आणे हि ॥1 इन गाथाओं की व्याख्या करते हुए मलयगिरि ने लिखा है-"इह सूर्यचन्द्रमसौ स्वकीयेऽयने वर्तमानौ यत्र परस्परं व्यतिपततः स कालो व्यतिपातः, तत्र रविसमयोः युगे युगमध्ये यानि अयनानि तेषां परस्परं सम्बन्धे एकत्र मेलने कृते द्वाभ्यां भागो ह्रियते । हृते च भागे यद् भवति भागलब्धं तावन्तः तावत्प्रमाणाः युगे व्यतिपाता भवन्ति ।" डब्ल्यू डब्ल्यू० हण्टर ने लिखा है—"आठवीं शती में अरब विद्वानों ने भारत से ज्योतिषविद्या सीखी और भारतीय ज्योतिष सिद्धान्तों का 'सिंद हिंद' के नाम से अरबी में अनुवाद किया।" अरबी भाषा में लिखी गयी “आइन-उल अंबा फितल कालुली अत्बा' नामक पुस्तक में लिखा है कि "भारतीय विद्वानों ने अरब के अन्तर्गत बगदाद की राजसभा में आकर ज्योतिष, चिकित्सा आदि शास्त्रों की शिक्षा दी थी। कर्क नाम के एक विद्वान शक संवत् 694 में बादशाह अलमंसूर के दरबार में ज्योतिष और चिकित्सा के ज्ञानदान के निमित्त गये थे।" मैक्समूलर ने लिखा है कि "भारतीयों को आकाश का रहस्य जानने की भावना विदेशीय प्रभाववश उद्भूत नहीं हुई, बल्कि स्वतन्त्र रूप से उत्पन्न हुई है । अतएव स्पष्ट है कि अष्टांग निमित्त ज्ञान में फलित ज्योतिष की प्राय: सभी बातें परिगणित हैं । अष्टांग निमित्त ने फलित सिद्धान्तों को विकसित और पल्लवित किया है । भारत में इसका प्रचार ई० सन् से पूर्व की शताब्दियों में ही हो चुका था। फ्रान्सीसी पर्यटक फाक्वीस बनियर भी इस बात का समर्थन करता है कि भारत में इस विद्या का विकास स्वतन्त्र रूप से हुआ है। यह सत्य है कि अष्टांगनिमित्त विद्या भारत में जन्मी, विकसित हुई और समृद्धिशाली हुई; पर ज्ञान की धारा सभी देशों में प्रवाहित होती है। अतः ईस्वी सन् की आरम्भिक शताब्दियों में ग्रीस और रोम में भी निमित्त का विचार किया जाता था । यहाँ ग्रीस और रोम का निमित्त विचार तुलना के लिए उद्धृत किया जायेगा। ___ ग्रीस-इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें बताया गया है कि भूकम्प और ग्रहण येलोपोनेसियन लड़ाई के पहले हुए थे। इसके सिवा एक्सरसेस ग्रीस से ___ 1. देखें-ज्योतिषकरण्डक पृ० 200-2051 2. हण्टर इण्डियन-गजे टियर-इण्डिया प० 217। 3. ज्योतिष रत्नाकर, प्रथम भाग, भूमिका; 4. Vol. XIII Lecture in objections p. 130
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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