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________________ 368 भद्रबाहुसंहिता विचार वीथि, प्रभा और वर्ण आदि के अनुसार करना चाहिए ॥21॥ यां दिशं केतवोचिभि मयन्ति दहन्ति च । तां दिशं पीडयन्त्येते क्षुधाद्यैः पीडन शम् ॥22॥ जिस दिशा को केतु अग्निमयी किरणों के द्वारा धूमित करते हैं और जलाते हैं, वह दिशा क्षुधा, रोगादि के द्वारा अत्यन्त पीड़ित होती है ॥22॥ नक्षत्रं यदि वा केतुर्ग्रहं वाऽप्यय घूमयेत् । तत: शस्त्रोपजीवीनां स्थावरं हिंसते ग्रहः ॥23॥ यदि केतु किमी नक्षत्र या ग्रह को अभिधूमित करे तो शस्त्र से आजीविका करने वाले एवं स्थावरों की हिंसा होती है ।।23। स्थावरे धुमिते तज्ज्ञा यायिनो यात्रिघुपर्ने । शवरां भिल्लजातीनां पारसीकांस्तथैव च ॥24॥ स्थावर और यात्रियों के धूमित होने पर शवर, भिल्ल और पारसियों को पीड़ित होना पड़ता है ॥2411 शुक्र दीप्त्या यदि हन्यामकेतुरुपागतः। तदा सस्यं नृपान् नागान् दैत्यान् शूरांश्च पीडयेत् ॥25॥ यदि धूमकेतु अपनी दीप्ति से शुक्र को घातित करे तो धान्य, राजा, नाग, दैत्य और शूरवीरों को पीड़ा होती है ।।25।। शुकानां शकुनानां च वृक्षाणां चिरजीविनाम्। शकुनि-ग्रहपीडायां फलमेतत् समादिशेत् ॥26॥ शुकुनि-ग्रह की पीड़ा में शुक, पक्षी चिर और वृक्षों का पीड़ा कारक फल कहना चाहिए ॥26॥ शिशुमारं यदा केतुरुपागत्य प्रधूमयेत्। तदा जलचरं तोयं वृद्धवक्षांश्च हिंसति ॥27॥ जब केतु शिशुमार-सूस नामक जलजन्तु को धूमित करता है तब जलचर, जल और वृद्ध वृक्षों का घात होता है ।।27।। सप्तर्षीणामन्यतमं यदा केतुः प्रधूमयेत् । तदा सर्वभयं विन्द्यात् ब्राह्मणानां न संशयः ॥28॥ 1. जीवांश्च स्थावरांश्च स हिंसति, मु० । 2. व्यापिनस्तथा मु० । 3. प्राप्नुवन्त्यनयान् घोरान् भयरुप्रैः प्रपीडिताः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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