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________________ एकविंशतितमोऽध्यायः विक्रान्तस्य शिखे दीप्ते ऊर्ध्वगे च प्रकीर्तिते । ऊर्ध्वमुण्डा शिखा यस्य स खिली केतुरुच्यते ॥15॥ जिस केतुकी शिखा दीप्त हो वह विक्रान्त संज्ञक, जिसकी शिखा ऊपर हो वह मुण्डा शिखा वाला केतु खिली कहा जाता है ॥15॥ शिखे विषाणवद् यस्य स विषाणी प्रकीत्तितः । व्युच्छिद्यमानो भीतेन रूक्षा च क्षिलिका शिखा ॥16॥ जिसकी शिखा विषाण के समान हो वह विषाणी तथा भय से रूक्ष और फैली हुई शिखा वाला केतु व्युच्छिद्यमान कहा जाता है ॥16॥ शिखाश्चतस्त्रो ग्रोवार्धं कबन्धस्य विधीयते । एकरश्मिः प्रदीप्तस्तु स केतुर्दीप्त उच्यते ॥17॥ 367 जिसकी आधी गर्दन हो और शिखा चारों ओर व्याप्त हो वह कबन्ध नाम का केतु और एक किरण वाला प्रदीप्त केतु दीप्त कहा जाता है ।।17।। शिखा मण्डलवद् यस्य स केतुर्मण्डली स्मृतः । मयूरपक्षी विज्ञेयो हसन: प्रभयात्पया ॥18॥ जिस केतुकी शिखा मण्डल के समान हो वह मण्डली और अल्प कान्ति से प्रकाशित होने वाला केतु मयूरपक्षी कहा जाता है ॥18॥ श्वेतः सुभिक्षदो ज्ञेय: सौम्यः शुक्लः शुभार्थिषु । कृष्णादिषु च वर्णेषु चातुर्वण्यं विभावयेत् ॥19॥ श्वेतवर्णं का केतु सुभिक्ष करने वाला; सुन्दर और शुक्लवर्ण का केतु शुभ फल देने वाला और कृष्ण, पीत, रक्त और शुक्लवर्ण के केतु में चारों वर्णों का शुभाशुभ जानना चाहिए ॥ 19 ॥ केतोः समुत्थितः केतुरन्यो यदि च दृश्यते । क्षुच्छस्त्र- रोग - विघ्नस्था प्रजा गच्छति संक्षयम् ॥20॥ केतु में से उत्पन्न अन्य केतु दिखलाई पड़े तो क्षुधा, शस्त्र, रोग, विघ्न आदि पीड़ित प्रजा क्षय को प्राप्त होती है || 201 एते च केतवः सर्वे धूमकेतुसमं फलम् । विचार्य वीथिभिश्चापि प्रभाभिश्च विशेषतः ॥21॥ उपर्युक्त सभी केतु धूमकेतु के समान फल देने वाले हैं तथापि इनका विशेष
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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