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________________ 355 विंशतितमोऽध्यायः पाण्डुर्वा द्वावलोढो वा चन्द्रमा यदि दृश्यते। व्याधितो हीनरश्मिश्च यदा तत्त्वे निवेशनम् ॥40॥ यदि चन्द्रमा पाण्डु या द्विगुणित निगला हुआ दिखलाई पड़े, व्यथित और हीन किरण मालूम पड़े तो चन्द्रग्रहण होता है ।।40॥ "ततः प्रबाध्यते वेषस्ततो विन्द्याद ग्रहागमम् । यतो वा मुच्यते वेषस्ततश्चन्द्रो विमुच्यते ॥41॥ जिस परिवेष से चन्द्रमा प्रवाहित हो, उससे ग्रहण होता है और जिससे चन्द्रमा छोड़ा जाय उससे चन्द्रमा मुक्त होता है ।।411 गृहीतो विष्यते चन्द्रो वेषमावेव विष्यते। यदा तदा विजानीयात् षण्मासाद ग्रहणं पुनः ॥42॥ जब चन्द्रग्रहण के समय चन्द्रमा अपना फटा-टूटा वेष प्रकट करे तो छ: महीने पश्चात् पुनः चन्द्रग्रहण समझना चाहिए ।।42।। प्रत्युद्गच्छति आदित्यं यदा गृह्यत चन्द्रमाः। भयं तदा विजानीयात् ब्राह्मणानां "विशेषत: ॥43॥ सूर्य की ओर जाते हुए चन्द्रमा का ग्रहण हो तो ब्राह्मणों के लिए विशेष भय समझना चाहिए ।।43॥ 5प्रातरासेविते चन्द्रो दृश्यते कनकप्रभः । भयं तदा विजानीयादमात्यानां विशेषतः ॥44।। जब प्रातःकाल में चन्द्रमा स्वर्ण की आभा वाला मालूम हो तो भय होता है और विशेष रूप से अमात्यों के लिए भय-आतंक होता है ।।44।। मध्याह्न तु यदा चन्द्रो गृह्यते कनकप्रभः । क्षत्रियाणां नृपाणां च तदा भयमुपस्थितम् ॥45॥ मध्याह्न में यदि चन्द्रमा कनकप्रभ मालूम हो तो क्षत्रिय और राजाओं के लिए भय होता है ।।45॥ 'यदा मध्यनिशायां तु राहुणा गृह्यते शशी। भयं तदा विजानीयात् वैश्यानां समुपस्थितम् ॥46॥ 1. व्यथितो मु० । 2. यत: मु०। 3. प्रत्युतमत्तम् मुः। 4. उपस्थितम् मु० । 5. प्रातराशे यदा सोमो गृह्यते राहुणाऽऽवृत: मु० । 6. व्यावृते यदि मध्याह्न मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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