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________________ 354 भद्रबाहुसंहिता पीतोत्तरा यदा कोटिदक्षिण: रुधिरप्रभः। कपोतग्रहणं विन्द्यात् पूर्व पश्चात् सितप्रभम् ॥34॥ यदि अष्टमी तिथि को चन्द्रमा की उत्तर की कोटि-किनारा लाल हो और दक्षिण का किनारा रुधिर जैसा हो तो कपोत रंग के ग्रहण की सूचना समझनी चाहिए तथा अन्त में श्वेत प्रभा समझनी चाहिए ।।34।। पीतोत्तरा यदा कोटिदक्षिणा रुधिरप्रभा। कपोतग्रहणं विन्द्याद् ग्रहं पश्चात् सितप्रभम् ॥35॥ यदि चन्द्रमा का उत्तरी किनारा पीला और दक्षिणी रुधिर के समान कान्ति वाला हो तो कपोत रंग का ग्रहण समझना चाहिए तथा अन्तिम समय में श्वेत प्रभा समझनी चाहिए ॥35॥ यतोऽभ्रस्तनितं विन्द्यात् मारुतं करकाशनी। रुतं वा श्रूयते किञ्चित् तदा विन्द्याद् ग्रहागमम् ॥36॥ जब बादल गर्जना करे, वायु, ओले और बिजली गिरे तथा किसी प्रकार का शब्द सुनाई पड़े तो ग्रहागम होता है ।।36।। मन्दक्षीरा यदा वृक्षा: सर्वदिक् कलुषायते । क्रीडते च यदा बालस्ततो विन्द्याद् ग्रहागमम् ॥37॥ जब वृक्ष अल्प क्षीर वाले हों, सभी दिशाएं कलुषित दिखलाई पड़ें, और ऐसे समय में बालक खेलते हों तो उस समय ग्रहागम जानना चाहिए। यहाँ सर्वत्र ग्रह से तात्पर्य 'ग्रहण' से है ॥37॥ ऊवं प्रस्पन्दते चन्द्रश्चित्र: संपरिवेष्यते। कुरुते मण्डलं स्पष्टस्तदा विन्द्याद् ग्रहागमम् ॥38॥ यदि चन्द्रमा ऊपर की ओर स्पन्दित होता हो, विचित्र प्रकार के परिवेष से वेष्टित, स्पष्ट मंडलाकार हो तो ग्रहण का आगमन समझना चाहिए ॥38॥ यतो विषयघातश्चः यतश्च पशु-पक्षिणः । तिष्ठन्ति मण्डलायन्ते ततो विन्द्याद् ग्रहागमम् ॥39॥ यदि देश का आघात हो और पशु-पक्षी मण्डलाकार होकर स्थित हों तो ग्रहण का आगमन समझना चाहिए ।।39॥ 1. रक्तोत्तरा सिनकोटिदक्षिणा स्याद् यदाष्टमी। कपोत ग्रहमाख्याति पूर्व पश्चात् मितप्रभम् ।। मु० । 2. कलुषा भवेत् मु० । 3. य तो मु० । 4. -श्चाय तयः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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