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________________ 324 भद्रबाहुसंहिता तथा बीज और जल का विनाश करता है और यम के समान मृत्युप्रद होता है। हाथ पर रखा हुआ धन भी विनाश को प्राप्त होता है ।।40-41।। प्रदक्षिणं तु नक्षत्रं यस्य कुर्यात् बृहस्पतिः। यायिनां विजयं विन्यात् नागराणां पराजयम् ॥42॥ बृहस्पति जिस व्यक्ति के दाहिनी ओर नक्षत्र को अभिघातित करता है, वह व्यक्ति यदि यायी हो तो विजय और नागरिक हो तो पराजय पाता है ।।42॥ प्रदक्षिणं तु कुर्वीत सोमं यदि बृहस्पतिः। नागराणां जयं विन्द्याद् यायिनां च पराजयम् ॥43॥ यदि बृहस्पति चन्द्रमा की प्रदक्षिणा करे तो नागरिकों की विजय और यायियों की पराजय होती है ।। 43।। उपघातेन चक्रेण मध्यगन्ता बृहस्पतिः । निहन्याद् यदि नक्षत्रं यस्य तस्य पराजयम् ॥44॥ उपघात चक्र के मध्य में स्थित होकर बृहस्पति जिस व्यक्ति के नक्षत्र का घात करता है, उसी का पराजय होता है ।।44।। बृहस्पतेर्यदा चन्द्रो रूपं संछादयेत् भशम्। स्थावराणां वधं कुर्यात् पुररोधं च दारुणम् ॥45॥ जब बृहस्पति के रूप का चन्द्रमा आच्छादन करे तो स्थावरों का वध होता है और नगर का भयंकर अवरोध होता है, जिससे अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं ।।45॥ स्निग्धप्रसन्नो विमलोऽभिरूपो महाप्रमाणो द्युतिमान् स पीत:। गुरयंदा चोत्तरमार्गचारी तदा प्रशस्त: 'प्रतिबद्धहन्ता ॥46॥ यदि बृहस्पति स्निग्ध, प्रसन्न, निर्मल, सुन्दर, कान्तिमान, पीतवर्ण, पूर्ण आकृति वाला और युवावस्था वाला उत्तरमार्ग में विचरण करता है तो शुभ होता है और प्रतिपक्षियों का विनाश करता है ।।46॥ इति श्रीसकलम निजनानन्दमहामुनिभद्रबाहुविरचिते परमनमित्तिकशास्त्र बृहस्पतिचारः सप्तदशः परिसमाप्तः ॥17॥ 1. प्रतिपक्ष- मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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