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________________ 304 भद्रबाहुसंहिता व्याधियों का प्रसार, चेचक का प्रकोप एवं अन्य संक्रामक दूषित बीमारियों का प्रसार होता है। श्रवण नक्षत्र का भेदन कर शुक्र अपने मार्ग में गमन करे तो कर्ण सम्बन्धी रोगों का अधिक प्रसार और धनिष्ठा नक्षत्र का भेदन कर आगे चले तो आँख की बीमारियाँ अधिक होती हैं। शुक्र की उक्त प्रकार की स्थिति में साधारण जनता को भी कष्ट होता है । व्यापारी वर्ग और कृषक वर्ग को शान्ति और सन्तोष की प्राप्ति होती है। वर्षा समयानुसार होती जाती है, जिससे कृषक वर्ग को परम शान्ति मिलती है । राजनीतिक उथल-पुथल होती है, जिससे साधारण जनता में भी आतंक व्याप्त रहता है। शतभिषा नक्षत्र का भेदन कर शुक्र गमन करे तो क्रूर कर्म करने वाले व्यक्तियों को कष्ट होता है। इस नक्षत्र का भेदन शुभ ग्रह के साथ होने से शुभ फल और क्रूर ग्रह के साय होने से अशुभ फल होता है। पूर्वाभाद्रपद का भेदन करने से जुआ खेलने वालों को कष्ट, उत्तराभाद्रपद का भेदन करने से फल-पुष्पों की वृद्धि और रेवती का भेदन करने से सेना का विनाश होता है । अश्विनी नक्षत्र में भेदन करने से शुक्र क्रूर ग्रह के साथ संयोग करे तो जनता को कष्ट और शुभ ग्रह का संयोग करे तो लाभ, सुभिक्ष और आनन्द की प्राप्ति होती है । भरणी नक्षत्र का भेदन करने से जनता को साधारण कष्ट होता कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी, अमावस्या, अष्टमी तिथि को शुक्र का उदय या अस्त हो तो पृथ्वी पर अत्यधिक जल की वर्षा होती है । अनाज की उत्पत्ति खूब होती है । यदि गुरु और शुक्र पूर्व-पश्चिम में परस्पर सातवीं राशि में स्थित हों तो रोग और भय से प्रजा पीड़ित रहती है, वृष्टि नहीं होती । गुरु, बुध, मंगल और शनि ये ग्रह यदि शुक्र के आगे के मार्ग में चलें तो वायु का प्रकोप, मनुष्यों में संघर्ष, अनीति और दुराचार की प्रवृत्ति, उल्कापात और विद्य त्पात से जनता में कष्ट तथा अनेक प्रकार के रोगों की वृद्धि होती है। यदि शनि शुक्र से आगे गमन करे तो जनता को कष्ट, वर्षाभाव और दुर्भिक्ष होता है। यदि मंगल शुक्र से आगे गमन करता हो तो भी जनता में विरोध, विवाद, शस्त्रभय, अग्निभय, चोरभय होने से नाना प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ते हैं। जनता में सभी प्रकार की अशान्ति रहती है। शुक्र के आगे मार्ग में बृहस्पति गमन करता हो तो समस्त मधुर पदार्थ सस्ते होते हैं। शुक्र के उदय या अस्तकाल में शुक्र के आगे जब बुध रहता है तब वर्षा और रोग रहते हैं। पित्त से उत्पन्न रोग तथा काच-कामलादि रोग उत्पन्न होते हैं । संन्यासी, अग्निहोत्री, वैद्य, नृत्य से आजीविका करने वाले; अश्व, गौ, वाहन, पीले वर्ण के पदार्थ विनाश को प्राप्त होते हैं । जिस समय अग्नि के समान शुक्र का वर्ण हो तब अग्निभय, रक्तवर्ण हो तो शस्त्रकोप, कांचन के समान वर्ण हो तो गौरव वर्ण के व्यक्तियों को व्याधि उत्पन्न होती है । यदि शुक्र हरित और कपिल वर्ण हो तो दमा और खांसी का रोग अधिक उत्पन्न होता है।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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