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________________ पंचदशोऽध्यायः 293 तदा ग्राम नगरं धान्यं चैव पल्वलोदकान् । धनधान्यं च विविधं हरन्ति च दहन्ति च ॥188॥ इस प्रकार का विकृत वक्र ग्राम, नगर, धान्य, छोटे-छोटे तालाब, नाना प्रकार के धन, धान्य और समृद्धि आदि का हरण और दहन करता है ।। 188।। द्वाविति यदा गत्वा पुनरायाति विशतिम्। भार्गवोऽस्तमने काले तद्वकं शोभनं भवेत् 189॥ यदि अस्तकाल में शुक्र बाईसवें नक्षत्र पर जाकर पुनः बीसवें पर लौट आये तो इस प्रकार का वक्र शुभ माना जाता है ।।189॥ क्षिप्रमोदं च वस्त्रं च पल्वलां औषधींस्तथा। ह्रदान् नदींश्च कूपांश्च भार्गव: पूरयिष्यति ॥190॥ इस प्रकार के शोभन वक्र में शुक्र आमोद-प्रमोद, वस्त्रप्राप्ति, तालाबों का जल से पूर्ण होना, औषधियों की उपज, नदी, कुएं, पोखरे आदि का जल से पूर्ण होना एवं धन-धान्य की समृद्धि आदि फल करता है ।190। त्रिविशति यदा गत्वा पुनरायाति विंशतिम् । भार्गवोऽस्तमने काले तद्वकं दीप्तमुच्यते ॥191॥ ___ यदि अस्तकाल में शुक्र तेईसवें नक्षत्र पर जाकर पुनः बीसवें नक्षत्र पर लौट आये तो इस प्रकार का वक्र दीप्त कहा जाता है ।।191॥ ग्रहांश्च वनखण्डांश्च दहत्यग्निरभीक्षणशः। दिशो वनस्पतींश्चापि भृगुर्दहति रश्मिभिः ॥192॥ इस प्रकार के दीप्त वक्र में शुक्र अपनी किरणों द्वारा घर, वनप्रदेश, दिशा, वनस्पति आदि को जलाता है । अर्थात् दीप्त वक्र में अग्नि और सूर्य की तेज किरणों द्वारा सभी वस्तुएं जलने लगती हैं 192॥ एतानि त्रीणि वक्राणि कुर्यात् पूर्वेण भार्गवः । इमाश्च पृष्ठतो विन्द्यात् 'वकं शुक्रस्य संयतः ॥193॥ इन तीन वक्रों-विकृत वक्र, शोभन और दीप्त वक्र को शुक्र पूर्व की ओर से करता है तथा पृष्ठतः-पीछे की ओर से निम्न वक्रों को करता है ।193॥ 1. प्रदह्य ग्राम-नगरं लभते दृश्यतो व्रजेत् मु०। 2. शोषयत्युशनाहतम् मु० । 3. रविर्दहनि मु० । 4. वक्राणि मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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