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________________ भद्रबाहु संहिता की प्रतिमा से पसीना निकले तो आगम की हानि, कृष्ण की प्रतिमा से पसीना निकले तो सभी जातियों को कष्ट सिद्ध और बौद्ध प्रतिमाओं से धुआँ सहित पसीना निकले तो उस प्रदेश के ऊपर महान् कष्ट, चण्डिका देवी की प्रतिमा से पसीना निकले तो स्त्रियों को कष्ट, वाराही देवी की प्रतिमा से पसीना निकले तो हाथियों का ध्वंस; नागिन देवी की प्रतिना से धुआँ सहित पसीना निकले तो गर्भनाश; राम की प्रतिमा से पसीना निकले तो देश में महान् उपद्रव, लूट-पाट, धननाश; सीता या पार्वती की प्रतिमा से पसीना निकले तो नारी-समाज को महान् एवं सूर्य की प्रतिमा से पसीना निकले तो संसार को अत्यधिक कष्ट और उपद्रव सहन करने पड़ते हैं । यदि तीर्थंकर की प्रतिमा भग्न हो और उससे अग्नि की पट या रक्त की धारा निकलती हुई दिखलायी पड़े तो संसार में मार-काट निश्चय होती है। आपस में मार-काट हुए बिना किसी को शान्ति नहीं मिलती है। किसी भी देव की प्रतिमा का भंग होना, फुटना वा हँसना चलना आदि अशुभकारक है । उक्त क्रियाएँ एक सप्ताह तक लगातार होती हों तो निश्चय ही तीन महीने के भीतर अनिष्टकारक फल मिलता है । ग्रहों की प्रतिमाएं, चौबीस शासनदेवों एवं शासनदेवियों की प्रतिमाएँ, क्षेत्रपाल और दिक्पालों की प्रतिमाएँ इनमें उक्त प्रकार की विकृति होने से व्याधि, धनहानि, मरण एवं अनेक प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। देवकुमार, देवकुमारी, देववनिता एवं देवदूतों के जो विकार उत्पन्न होते हैं, वे समाज में अनेक प्रकार की हानि पहुँचाते हैं । देवों के प्रसाद, भवन, चैत्यालय, वेदिका, तोरण, केतु आदि के जलने या बिजली द्वारा अग्नि प्राप्त होने से उस देश में अत्यन्त अनिष्टकर क्रियाएं होती हैं । उक्त क्रियाओं का फल छः महीने में प्राप्त होता है । भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी देवों के प्रकृति विपर्यय से लोगों को नाना प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है । 254 आकाश में असमय में इन्द्रधनुष दिखलायी पड़े तो प्रजा को कष्ट, वर्षाभाव और धनहानि होती है । इन्द्रधनुष का वर्षा ऋतु में होना ही शुभसूचक माना जाता है, अन्य ऋतु में अशुभसूचक कहा गया है । आकाश से रुधिर, मांस, अस्थि और चर्बी की वर्षा होने से संग्राम, जनता को भय, महामारी एवं प्रशासकों में मतभेद होता है । धान्य, सुवर्ण, वल्कल, पुष्प और फल की वर्षा हो तो उस नगर का विनाश होता है, जिसमें यह घटना घटती है । जिस नगर में कोयले और धूलि की वर्षा होती है, उस नगर का सर्वनाश होता है। बिना बादल के आकाश ओलों का गिरना, बिजली का तड़कना तथा बिना गर्जन के अकस्मात् बिजली का गिरना उस प्रदेश के लिए भयोत्पादक है तथा नाना प्रकार की हानियाँ होती हैं। किसी भी व्यक्ति को शान्ति नहीं मिल सकती है। निर्मल सूर्य में छाया दिखलायी न दे अथवा विकृत छाया दिखलायी दे तो देश में महाभय होता है । जब दिन या
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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