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________________ 148 भद्रबाहुसंहिता दिखलाई दे तो नागरिकों को कष्ट होता है। साथ ही छः महीने तक उपद्रव होते रहते हैं। प्रकृति का प्रकोप होने से अनेक प्रकार की बीमारियां भी होती हैं। रात्रि में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो देश की आर्थिक हानि, वैदेशिक सम्मान का अभाव तथा देशवासियों को अनेक प्रकार के कप्ट सहन करने पड़ते हैं । यदि कुछ रात्रि शेष रहे तब गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो चोर, नपति, प्रबन्धक एवं पूंजीपतियों के लिए हानिकारक होता है । रात्रि के अन्तिम प्रहर में ब्रह्ममुहर्त काल में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो उस प्रदेश में धन सपदा का अधिक विकास होता है। भूमि के नीचे से धन प्राप्त होता है । यह गन्धर्वनगर सुभिक्षकारक है। इसके द्वारा धन-धान्य की वृद्धि होती है। प्रशासक वर्ग का भी अभ्युदय होता है। कला-कौशल की वृद्धि के लिए भी इस समय का गन्धर्वनगर श्रेष्ठ माना गया है। पंचरंगा गन्धर्वनगर हो तो नागरिकों में भय और आतंक का संचार करता है, रोगभय भी इसके द्वारा होते हैं । हवा बहुत तेज चलती है, जिससे फसल को भी क्षति पहुंचती है। श्वेत और रक्तवर्ण की वस्तुओं की महंगाई विशेष रूप से रहती है। जनता में अशान्ति और आतंक फैलता है। श्वेतवर्ण का गन्धर्वनगर हो तो घी, तेल और दूध का नाश होता है। पशुओं की भी कमी होती है और अनेक प्रकार की व्याधियां भी व्याप्त हो जाती हैं। गाय, बैल और घोड़ों की कीमत में अधिक वृद्धि होती है । तिलहन और तिल का भाव ऊंचा बढ़ता है। विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध दृढ़ होता है। काले रंग का गन्धर्वनगर वस्त्र नाश करता है, कपास की उत्पत्ति कम होती है तथा वस्त्र बनानेवाले मिलों में भी हड़ताल होती है, जिससे वस्त्र का भाव तेज हो जाता है। कागज तथा कागज के द्वारा निर्मित वस्तुओं के मूल्य में भी वृद्धि होती है। पुरानी वस्तुओं का भाव भी बढ़ जाता है तथा वस्तुओं की कमी होने के कारण बाजार तेज होता जाता है। लालरंग का गन्धर्वनगर अधिक अशुभ होता है, यह जितनी ज्यादा देर तक दिखलाई पड़ता रहता है, उतना ही हानिकारक होता है। इस प्रकार के गन्धर्वनगर का फल मारपीट, झगड़ा, उपद्रव, अस्त्र-शस्त्र का प्रहार एवं अन्य प्रकार से झगड़े-टण्टों का होना आदि है। सभी प्रकार के रंगों में लालरंग का गन्धर्वनगर अशुभ कहा गया है । इसका फल रक्तपात निश्चित है । जिस रंग का गन्धर्वनगर जितने अधिक समय तक रहता है, उसका फल उतना ही अधिक शुभाशुभ समझना चाहिए। गन्धर्वनगर जिस स्थान या नगर में दिखलाई देता है, उसका फलादेश उसी स्थान और नगर में समझना चाहिए। जिस दिशा में दिखलाई दे उस दिशा में भी हानि या लाभ पहुंचाता है। इसका फलादेश विश्वजनीन नहीं होता, केवल थोड़े से प्रदेश में ही होता है । जब गन्धर्वनगर आकाश के तारों की तरह बीच में
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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