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________________ 110 भद्रबाहुसंहिता दुभिक्षं चाप्यवृष्टि च शस्त्रं रोगं जनक्षयम्। कुरुते सोऽनिलो घोरं आषाढाभ्यतरं परम् ॥31॥ आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पूर्व के चलते हुए वायु को यदि दक्षिण का उठा हुआ वायु परास्त करके नष्ट कर दे तो उस समय धान्य नहीं बोना चाहिए । बल्कि धान्यसंचय करना ज्यादा अच्छा होता है, क्योंकि वह वायु दुभिक्ष, अनावृष्टि, शस्त्रसंचार और जनक्षय का कारण होता है ।। 30-31॥ पापघाते तु वातानां श्रेष्ठं सर्वत्र चादिशेत्।। 'श्रेष्ठानपि यदा हन्युः पापाः पापं तदाऽऽदिशेत् ॥32॥ श्रेष्ठ वायुओं में से किसी के द्वारा पापवायु का यदि घात हो तो उसका फल सर्वत्र श्रेष्ठ कहना ही चाहिए और पापवायुएँ श्रेष्ठ वायुओं का घात करें तो उसका फल अशुभ ही जानना चाहिए। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार के वायु की प्रधानता होती है, उसी प्रकार का शुभाशुभ फल होता है ।।32।। यदा तु वाताश्चत्वारो भृशं वान्त्यपसव्यतः । अल्पोदक शस्त्राघातं भयं व्याधि च कुर्वते ॥33॥ यदि पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर के चारों पवन अपसव्य मार्ग सेदाहिनी ओर से तेजी के साथ चलें तो वे अल्पवर्षा, धान्यनाश और व्याधि उत्पन्न होने की सूचना देते हैं - उक्त वातें उस वर्ष घटित होती हैं ।।33।। प्रदक्षिणं यदा वान्ति त एव सुखशीतलाः। क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं 0राज्यवृद्धिर्जयस्तथा ॥34॥ वे ही चारों पवन यदि प्रदक्षिणा करते हुए चलते हैं तो सुख एवं शीतलता को प्रदान करने वाले होते हैं तथा लोगों को क्षेम, सुभिक्ष, आरोग्य, राजवृद्धि और विजय की सूचना देनेवाले होते हैं ॥34॥ समन्ततो यदा वान्ति परस्परविघातिनः111 शस्त्रं12 जनक्षयं रोगं सस्यघातं च कुर्वते ॥35॥ चारों पवन यदि सब ओर से एक दूसरे का परस्पर घात करते हुए चलें तो शस्त्रभय, प्रजानाश, रोग और धान्यघात करनेवाले होते हैं ।।35॥ 1. -पातेषु मु • A. 1 2. नागानां मु• A. 1 3. श्रेष्ठः मु० A. D. I 4. श्रेष्ठात्तापि मु० A. 1 5-6. पयोत्युपम् मु० । 7. अपसवंतः मु० A. य समन्ततः मु० C. 1 8. अल्पोदम् मु० । 9. सस्यसंघातं मु०। 10. राज्य बुद्धिर्जयस्तथा मु.। 11. परिविधानिलः मु० . 12. सत्वं मु० A. 1 13. जनभयं मु० C ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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