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________________ ( 8 ) उपशमना करण- कर्म का उदय में आने के अयोग्य हो जाना उपशमना करण है। जिस प्रकार भूमि में स्थित पौधे वर्षा के जल से भूमि पर पपड़ी आ जाने से दब जाते हैं, प्रकट नहीं होते हैं। इसी प्रकार कर्मों को ज्ञानबल या संयम से दबा देने से उनका फल देना रुक जाता है । इसे उपशमना करण कहते हैं। इससे तत्काल शान्ति मिलती है। जो आत्मशक्ति को प्रकट करने में सहायक होती है अथवा जिस प्रकार शरीर में घाव हो जाने से या ऑपरेशन करने से पीड़ा या कष्ट होता है । उस कष्ट का अनुभव न हो इसके लिए इन्जेक्शन या दवाई दी जाती है जिससे पीड़ा या दर्द का शमन हो जाता है। घाव के विद्यमान रहने पर भी रोगी उसके दर्द का अनुभव नहीं करता । निश्चेतक इंजेक्शन या दवा के परिणामस्वरूप जीव उदय होने वाली वेदना से उस समय बचा रहता है। इसी प्रकार ज्ञान और क्रिया विशेष से कर्म प्रकृतियों के कुफल का शमन किया जाता है। यही उपशमना करण है । परन्तु जिस प्रकार इन्जेक्शन या दवा से दर्द का शमन रहने पर भी घाव भरता रहता है और घाव भरने का जो समय है। वह घटता है। इसी प्रकार कर्म-प्रकृतियों के फलभोग का शमन होने पर भी उनकी स्थिति, अनुभाग व प्रदेश घटता रह सकता है। नियम- उपशमना करण केवल मोहनीय कर्म की प्रकृतियों में ही होता है। करण - सिद्धान्त का महत्त्व करण का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि वर्तमान में जिन कर्म प्रकृतियों का बन्ध हो रहा है, पुरानी बंधी हुई प्रकृतियों पर उनका प्रभाव पड़ता है और वे वर्तमान में बध्यमान प्रकृतियों के अनुरूप परिवर्तित हो जाती हैं। सीधे शब्दों में कहें तो वर्तमान में हमारी जो आदत बन रही है, पुरानी आदतें बदल कर उसी के अनुरूप हो जाती हैं। यह सबका अनुभव है । उदाहरणार्थ- प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को ले सकते हैं। प्रसन्नचन्द्र राजा थे। वे संसार को असार समझकर राजपाट और गृहस्थाश्रम का त्याग कर साधु बन गये थे। वे एक दिन साधुवेश में ध्यान की मुद्रा में खड़े थे। उस समय श्रेणिक राजा भगवान् महावीर के दर्शनार्थ जाते हुए उधर से निकला। उसने राजर्षि को ध्यान मुद्रा में देखा । श्रेणिक XXXVIII प्राक्कथन
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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