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________________ रसार्णवसुधाकरः नीच मनुष्य के आश्रित अनौचित्यं जैसे पहले कृषिकार्य में परिश्रम करने वाला शूद्र गन्धूर नामक वृक्ष के नीचे दोनों हाथों को तकिया के समान अपने सिर के नीचे करके घुटपुट ध्वनि से क्रमबद्ध, लम्बी-लम्बी श्वास से युक्त तथा सैकड़ों फूत्कारों के द्वारा दोनों ओठों को आस्फोटित करता हुआ (फूँकमारता या सिकोड़ता हुआ) उत्तान सो रहा है। 1363 ।। यहाँ नीचगत निन्द्रा भावकों के लिए आस्वाद्य नहीं होती। उत्पत्तिसन्धिशाबल्यशान्तयो व्यभिचारिणाम् । | २०० ] दशाश्चतस्त्र तत्र व्यभिचारी भावों की दशाएँ उत्पत्ति, शबलता, सन्धि और शान्त व्यभिचारी भावों की चार दशाएँ होती है। उत्पतिर्भावसम्भवः । । १०० । । उत्पत्ति - उत्पत्ति भाव से उत्पन्न होती है ।। १००॥ यथा (कुमारसम्भवे ६ / ८४ ) - एवंवादिनि देवर्षौ पार्श्वे पितुरधोमुखी । लीलाकमलपत्राणि गणयामास पार्वती ।।364।। अत्र लज्जाया हर्षस्य वा समुत्पत्तिः । जैसे- (कुमारसम्भव ६ / ८४ में) जिस समय अङ्गिराऋषि इस प्रकार कह रहे थे उस समय नम्रमुखी पार्वती अपने पिता के पास बैठ कर लज्जावश लीला-कमल-पत्रों को गिन रही थीं। 1364 ।। यहाँ लज्जा अथवा हर्ष की समुत्पत्ति है । सरूपमसरूपं वा भिन्नकारणकल्पितम् । भावद्वयं मिलति चेत् स सन्धिरिति गीयते ।। १०१ ।। सन्धि- समान रूप वाले अथवा असमान रूप वाले भिन्न कारण से उत्पन्न यदि दो भाव मिलते हैं, तो वह सन्धि कहलाती है ॥ १०१ ॥ सरूपयोः सन्धिर्यथा अरिव्रजानामनपोतशिङ्गखङ्गप्रहारैरवनिं गतानाम् । प्रियाजनाङ्कप्रहिताङ्गकानां भवन्ति नेत्रान्तनिमीलनानि ।।365 ।। अत्र नायकखड्गप्रहारप्रियाजनाङ्गस्पर्शाभ्यां कल्पितयोः प्रतिनायकेषु मोहयोः सन्धिनेत्रान्तनिमीलनेन व्यज्यते ।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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