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________________ द्वितीयो विलासः [१९९] जैसे (दशरूपक में भी उद्धृत २१९) अरे तुम कौन हो? बतलाता हूँ- मुझे भाग्य का मारा शाखोटक (सेहुण्ड) वृक्ष जानो। तुम तो वैराग्य-युक्त से बोल रहे हो। हाँ, आपने ठीक जान लिया। किन्तु यह (वैराग्य) किस कारण से है? सुनिये-यहाँ (मार्ग के) वाम भाग में जो वट वृक्ष है, पथिकजन उसका सब प्रकार से (छाया, आरोहण आदि) से आश्रय लेते हैं, किन्तु मार्ग में स्थित होते हुए मेरी छाया भी दूसरे का उपकार नहीं कर सकती।।361 ।। यहाँ वृक्ष विशेष होने के कारण अचेतन शाखोटक में चित्तविकार के असम्भव होने से अनुचित निर्वेद आभासता को प्राप्त करता है। अयोग्यत्वकृतं प्रोक्तं नीचतिर्यड्नराश्रयम् ।।१९।। (२) अयोग्यता से अनौचित्य- अयोग्यताकृत अनौचित्य छोटे-छोटे पक्षियों और नीच मनुष्य के आश्रित होता है।९९उ.॥ तत्र नीचतिर्यग्गतं यथा वेलातटे प्रसूयेथा मा भूः शङ्कितमानसा । मां जानाति समुद्रोऽयं टिट्टिभं साहसप्रियम् ।।362।। अत्र यदि समुद्रवेलायां प्रसूये, तर्हि उद्वेलकल्लोलमालादिभिर्ममापत्यानि हतानि भवेयुरिति शङ्कितायां निजगृहण्यां कधिहिटिभः पक्षिविशेषो गर्वायते। तदयं गर्यो नीचतिर्यग्गतत्वादाभासो नातीव स्वदते। छोटे पक्षी के आश्रित अनौचित्य जैसे समुद्र के तट पर प्रसव करो। (यह समुद्र अण्डों को बहा ले जाएगा इसके लिए) शङ्कित मन वाली मत होवो क्योंकि यह समुद्र साहसप्रिय (साहसी) मुझ टिट्टिम को जानता है।।362।। यहाँ यदि समुद्र तट पर प्रसव करती हूँ तो उठती हुई तरङ्गों के समूह द्वारा मेरी सन्तानों का हरण हो जाएगा इस शङ्का से युक्त अपनी पत्नी के प्रति कोई टिट्टिम (नामक) पक्षीविशेष गर्व प्रकट करता है। यह गर्व क्षुद्रपक्षीगत होने के कारण (गर्व का) आभास बिल्कुल आस्वाद्य नहीं होता। नीचनराश्रयो यथा अभ्युत्तानशयालुना करयुगप्राप्तोपधानश्रिया गन्धूरस्य तरोतले घुटपुटध्वानानुसन्धायिभिः । दीर्घः श्वासभरैःसफूत्कृतिशतैरास्फोटितोष्ठद्वयं तत्पूर्वं कृषिकर्मणि श्रमवता क्षुद्रेण निद्रायते ।।363 ।। अत्र नीचगता निद्रा भावकेभ्यो नातिस्वदते।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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