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________________ | १२८ ] रसार्णवसुधाकरः व्यायामाद् यथा (शिशुपालवधे ७/७४)गत्वोद्रेकं जघनपुलिने रुद्धमध्यप्रदेशः क्रामन्नूरुद्रुमभुजलताः पूर्णनाभिहृदान्तः । उल्लङ्घ्योच्चैः कुचतटभुवं प्लावयन्रोमकूपान् स्वेदापूरो युवतिसरितां प्राप गण्डस्थलानि ।।203 ।। अत्र कुसुमापचयपर्यटनैन व्यायामेन स्वेदः । व्यायाम से स्वेद जैसे (शिशुपालवध ७ / ७४ में) - युवतिरूपिणी नदियों का स्वेद प्रवाह जघनरूपी तटप्रदेश में बढ़कर, मध्यप्रदेश (युवतियों का कटिभाग, पक्षान्तर - जल बहने का स्थान) को रोककर नाभिरूपी तडाग के मध्यभाग को पूर्ण कर ऊँचे-ऊँचे स्तनरूपी दोनों तटों की भूमि को लाँघकर रोमच्छिद्रों (पक्षान्तर कूपों) को प्लावित करता हुआ गण्डस्थलों (पक्षन्तार ऊँचे भूमि प्रदेशों) पर फैल गया । । 203 11 श्रमोरत्यादिपरिश्रान्तिः । श्रम का अर्थ है- रति इत्यादि से उत्पन्न धकावट । चाहिए। तस्माद् यथा मञ्चेषु पञ्चेषु समाकुलान वाताय वातायनसंश्रितानाम् । स्विन्नानि खिन्नानि मुखान्यशंसन् सम्भोगमम्भोरुहलोचनानाम् 1120411 उस थकावट से स्वेद जैसे शय्या पर काम-क्रीडा से व्याकुल (अत एव) हवा खाने के लिए खिडकियों पर शरण (आश्रय) लेने वाली नेत्र रूपी कमल से युक्त (कमलनयनी तरुणियों) के पसीने से तर खिन्न मुख सम्भोग की प्रशंसा करने लगे । 120411 आदिशब्दाद् गीतनृत्तश्रान्त्यादयः । रति इत्यादि में प्रयुक्त इत्यादि शब्द से नृत्य, गीत इत्यादि से भी स्वेद को समझना गीतश्रान्त्या यथा (कुमारसम्भवे ३/३८) गीतान्तरेषु श्रमवारिलेशैः किञ्चित्समुछ्वासितपत्रलेखम् । पुष्पासवाधूर्णितनेत्रशोभं प्रियामुखं किम्पुरुषश्चुचुम्ब 11205 ||
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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