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________________ प्रथमो विलासः | १२७ लगी, जिसमें वृक्षों से टप-टप ओस की बूंदे गिर रही हों।।200।। यहाँ लव और कुश की गीत के आतिशय माधुर्य से सुनने में एकाग्रतारूपी विस्मय के कारण स्तम्भ है। अथ स्वेदः निदाघहर्षव्यायामश्रमक्रोधभयादिभिः । स्वेदः सञ्जायते तत्र त्वनुभावाभवन्त्यमी ।।३०४।। स्वेदापनयवातेच्छाव्यजनग्रहणादयः । २. स्वेद- धूप, हर्ष, व्यायाम, श्रम, क्रोध, भय इत्यादि के कारण स्वेद (पसीना) उत्पन्न होता है (निकलता है)। उसमें पसीने का पोछना, हवा की इच्छा करना, पंखा लेना इत्यादि अनुभाव होते हैं।।३०४-३०५पू.।। निदाघाद् यथा करैरुपात्तान् कमलोत्करेभ्यो निजैर्विवस्वान् विकचोदरेभ्यः । तस्याः निचिक्षेप मुखारविन्दे स्वेदापदेशान्मकरन्दबिदून् . ।।201 ।। धूप से स्वेद जैसे सूर्य ने उस (नायिका के) मुखरूपी कमल पर पसीनों की बूंदों के रूप में मानों विकसित पंखुड़ियों वाले कमलों के समूह से अपनी किरणों द्वारा बटोरे गये पराग कणों को डाल दिया।। 201 ।। हर्षाद् यथा सख्या कृतानुज्ञमुपेत्य पश्चाद् धून्वन् शिरोजान् करजैः प्रियायाः । अनायत्राननवायुनापि स्वित्रान्तरानेव चकार कश्चित् ।।202।। अत्रोभयोरन्योऽन्यस्पर्शहर्षेण स्वेदः । हर्ष से स्वेद जैसे सखी के द्वारा अनुमति प्राप्त करने के पश्चात् कोई (नायक) समीप में जाकर अपने हाथों के नाखूनों से प्रिया के सिर के बालों के धूनता हुआ तथा (अपने) मुख की हवा से (उसके पसीने को) सुखाता हुआ पसीने से रहित ही कर दिया। 202 ।। यहाँ (नायक और नायिका) दोनों के परस्पर स्पर्श के हर्ष के कारण स्वेद है।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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