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________________ [विशेष वचन ] १. सिद्धे पुनर्वचनं प्रकरणद्वारेण नियमार्थम् (दु० टी० ) । २. तवर्गश्चटवर्गयोगे चटवर्गावित्यनेनैव सिद्धे नियमार्थम् (वि० प० ) । तृतीये आख्याताध्यायेऽष्टमो घुडादिपादः [रूपसिद्धि] १. वपुष्टरम् । वपुस् + तर + सि। प्रकृष्टं वपुः । ' वपुस्' शब्द से प्रकृष्टार्थ में 'तर' प्रत्यय, "ह्रस्वात् तादौ तद्धिते नाम्नः” (कात० परि० ष० २२) से सकार को षकार, प्रकृत सूत्र से तकार को टकार, लिङ्गसंज्ञा, प्रथमाविभक्ति - ए० व० में 'सि' प्रत्यय तथा “अकारादसम्बुद्धौ मुश्च” (२।२।७) से 'मु' का आगम- सिप्रत्यय का लोप २. वपुष्टा। वपुस् + ता + सि । वपुषो भावः । ' वपुस्' शब्द से "तत्वौ भावे” (२।६।१३) सूत्र द्वारा 'त' प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग में 'आ' प्रत्यय, समानदीर्घ- आकारलोप, सकार को षकार, सिप्रत्यय तथा उसका लोप । ३. द्वेष्टि । द्विष् + ति। 'द्विष अप्रीतौ' (२।६०) से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक प्र० पु० - ए० व० 'ति' प्रत्यय, अन् विकरण का लुक्, “नामिनश्चोपधाया लघोः " ( ३।५।२) से उपधासंज्ञक इकार को गुण - एकार तथा प्रकृत सूत्र से तकार को टकारादेश । ४३५ ४. द्विष्टः। द्विष् + तस् । 'द्विष्' धातु से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय, अन्विकरण का लुक् तथा तकार को टकारादेश । ५. पिण्ड्ढि । पिष् + हि । 'पिष्ट संचूर्णने' (६।१२) धातु से पञ्चमीविभक्तिसंज्ञक म० पु० ए० व० 'हि' प्रत्यय, "स्वराद् रुधादेः परो नशब्दः " ( ३।२।३६ ) से 'न' विकरण, (पिनष् + हि), नकार को णकार, हि को धिष् को ढ्, “धुटां तृतीयश्चतुर्थेषु” (३|८|८) से ढ् को ड् तथा ध् को ढ् आदेश। - - ६. कुष्णाति । कुष् + ना + ति। 'कुष निष्कर्षे' (८।४०) धातु से वर्तमानासंज्ञक ‘ति’ प्रत्यय, “ना क्र्यादेः " ( ३।२।३८) से 'ना' विकरण तथा प्रकृत सूत्र से नकार को णकारादेश । " ७. ईट्टे । ईड् + ते । 'ईड स्तुता' (२।४३) धातु से वर्तमानासंज्ञक आत्मनेपदप्र० पु० ए० व० 'ते' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से तकार को टकार तथा “ अघोषेष्वशिटां प्रथम:” (३।८।९) से डकार को टकारादेश । ८. लीढः । लिह् + तस् । 'लिह आस्वादने' (२।६३) धातु से वर्तमानाविभक्तिसंज्ञक प्र० पु० द्विव० 'तस्' प्रत्यय, ह् को ढ् त् को ध्, ध् को ढ्, "ढे ढलोपो दीर्घश्चोपधायाः " (३।८।६) से पूर्ववर्ती ढकार का लोप तथा इकार को दीर्घ आदेश । + ९. अलीढ्वम् । अट् लिह् अद्यतनी-ध्वम् । 'लिह आस्वादने' धातु से अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक म० पु० व० व० 'ध्वम्' प्रत्यय, अडागम, हकार को ढकार, सिच् प्रत्यय, धकार को ढकार, सिच् का लोप, ढलोप तथा इकार को दीर्घ आदेश ||८२५| +
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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