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________________ ३३१ तृतीये आख्याताध्याये षष्ठोऽनुषगलोपादिपादः (३।८।५) से तकार को टकारादेश। 'भृज्' आदेशपक्ष में जकार को षकार तथा ऋकार को गुण आदेश–अर्। २. भ्रक्ष्यति। भ्रस्ज् + स्यति। 'भ्रस्ज् पाके' (५। ४) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यति' प्रत्यय, ज् को ए, सलोप, ष् को क् तथा स् को । ३. व्रष्टा। वश्च् + ता। 'वश्चू छेदने' (५। १९) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से चकार को षकार, सोपधपक्ष में सकारलोप तथा तकार को टकार आदेश। ४. व्रक्ष्यति। व्रस्च् + स्यति। 'वश्चू छेदने' (५। १९) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक ‘स्यति' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से चकार को षकार, सकार का लोप, ष् को क् तथा स को ष् आदेश। ___५. स्रष्टा। सृज् + ता। 'सृज विसर्गे' (३। ११६) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, “सृजिदृशोरागमोऽकार: स्वरात् परो धुटि गुणवृद्धिस्थाने'' (३।४।२५) से धातुघटित ऋकार के पश्चात् अकारागम, प्रकृत सूत्र से जकार को षकार, “रमृवर्णः" (१।२।१०) से ऋकार को रकार तथा तकार को टकार आदेश। ६. स्रक्ष्यति। सृज् + स्यति। 'सृज विसर्गे' (३। ११६) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक 'स्यति' प्रत्यय, प्रकृत सूत्र से ज् को ए, अकारागम, ऋ को र्, ष् को क् तथा सकार को षकार आदेश। ७. मार्टा। मृज् + ता। 'मृजू शुद्धौ' (२। २९) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय, गुण, “मों मार्जि:" (३८।२३) से मा आदेश, प्रकृत सूत्र से जकार को षकार तथा तकार को षकारादेश। ८. मायति। मृज् + स्यति। 'मृजू शुद्धौ (२।२९) धातु से भविष्यन्तीसंज्ञक ‘स्यति' प्रत्यय, गुण, मा आदेश, ज् को ष्, ष् को क् तथा स् को छ। ९. अमा। अट् + मृज् + दि। 'मृजू शुद्धौ' (२।२९) धातु से ह्यस्तनीसंज्ञक दि' प्रत्यय, अडागम, गुण, मार्ज आदेश, ज् को ए, “अघोषेष्वशिटां प्रथम:' (३।८।९) से ष् को ट् तथा 'दि' का लोप।। १०. यष्टा। यज् + ता। 'यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (१। ६०८) धातु से श्वस्तनीसंज्ञक 'ता' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्। ११. राष्टिः। राज् + क्ति + सि। 'राज दीप्तौ' (१ । ५३९) धातु से “स्त्रियां क्तिः" (४। ५। ७२) से 'क्ति' प्रत्यय, ज् को ष्, त् को ट्, ‘राष्टि' की लिङ्गसंज्ञा, सिप्रत्यय तथा “रसकारयोर्विसृष्टः" (३।८।२) से सकार को विसर्गादेश। ११. प्राष्टिः। भ्राज् + क्ति + सि। 'भ्राजु दीप्तौ' (१।३४७, ५४०) धातु से 'क्ति' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत्।। ७३९ ।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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