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________________ तृतीये आख्याताध्याये चतुर्थः सम्प्रसारणपाद: १४७ [समीक्षा] गणपठित धातुओं से पाणिनि ने 'शप्' तथा कातन्त्रकार ने 'अन्' यह सामान्य विकरण किया है। प्रक्रिया के अनुसार सभी व्याकरणों में गणपठित धातु तथा आख्यातसंज्ञक प्रत्ययों के मध्य में जिस प्रत्यय का विधान किया जाता है, उसे विकरण कहते हैं - 'प्रकृतिप्रत्ययमध्यपठितत्वं विकरणत्वम्'। इसके साथ ही भ्वादिगणपठित धातुओं में तो सामान्य विकरण सर्वत्र प्रवृत्त होता है और स्वरूपतः उसकी स्थिति भी बनी रहती है, परन्तु 'अदादि' प्रभृति गणों की धातुओं में उसकी प्राप्ति तो होती है, लेकिन उसे बाधकर अन्य विकरण हो जाते हैं। अदादिगण की धातुओं में उसका लुक् ही दोनों आचार्यों ने किया है। पाणिनि का सूत्र है - "अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (अ० २।४७२)। [रूपसिद्धि] १. अत्ति। अद् + अन्लुक् + वर्तमाना-ति। 'अद भक्षणे' (२। १) धातु से वर्तमानासंज्ञक परस्मैपद प्रथमपुरुष–एकवचन 'ति' प्रत्यय, “अन् विकरण: कर्तरि'' (३।२।३२) से अन् विकरण, प्रकृत सूत्र से उसका लुक् तथा दकार को तकारादेश। २. हन्ति। हन् + अन्लुक् + वर्तमाना-ति। 'हन् हिंसागत्यो:' (२४) धात् से वर्तमानासंज्ञक 'ति' प्रत्यय, अन् विकरण तथा उसका लुक्। ३. जुहोति। हु + अन्लुक् + वर्तमाना – ति। 'हु दाने' (२।६७) धातु से ति-प्रत्यय, अन् विकरण, उसका लुक् “जुहोत्यादीनां सार्वधातुके" (३।३।८) से द्विर्वचन, अभ्याससंज्ञा, हकार को जकार तथा धातुघटित उकार को गुणादेश। ४. बिभेति। भी + अन्लुक् + वर्तमाना-ति। 'जि भी भये' (२।६८) धातु से ति-प्रत्यय, अन् विकरण, उसका लुक्, 'भी' को द्विर्वचन, अभ्याससंज्ञा, ह्रस्व, भ् को ब् तथा धातुगत ईकार को गुणादेश। ५. जुहुत:। ह + अन्लक् + वर्तमाना तस्। 'ह दाने' (२०६७) धातु से वर्तमानासंज्ञक प्रथमपुरुष-द्विवचन 'तस्' प्रत्यय, अन् विकरण, उसका लुक् तथा द्विवचनादि। ६. बिभीतः। भी + अन्लुक् + वर्तमाना-तस्। 'जि भी भये' (२६८) धातु से वर्तमानासंज्ञक 'तस्' प्रत्यय, अविकरण, उसका लुक, द्विवचनादि। 'जहतः, बिभीत:' में “लुग्लोपे न प्रत्ययकृतम्'' (३।८।२९) के अनुसार गुणादेश नहीं होता है।। ६३१ । ६३२. इण्-स्था-दा-पिबति-भूभ्यः सिच: परस्मै [३।४।९२] [सूत्रार्थ] परम्मैपदसंज्ञक प्रत्यय के परे रहते ‘डण्, स्था, दा, पा, भू' धातुओं से होने वाले 'सिच्' प्रत्यय का लुक् होता है।। ६३२।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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