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________________ तृतीये आख्याताध्याये चतुर्थः सम्प्रसारणपाद: १२७ र्बुभुक्षायाम्, उदन्यधातुः पिपासायाम्, धनायधातुराकाङ्क्षायामिति। 'अशनमिच्छति भोक्तम्, उदकमिच्छति पातुम्, धनमिच्छति तृष्णक्' इत्यर्थे यिन् प्रत्ययो नाभिधीयते।। ६१७। [बि० टी०] यिन्य० । 'वस्त्रीयति, मालीयति' इत्यत्र अवर्णभेदात् प्रदत्तम्। अशनायेत्यादि। अश्यते य इति कर्मणि यूट्, तर्हि अकारलोप: कथं स्याद् इति पूर्वपक्ष: सिद्धान्तश्च टीकायां लिखितत्वादिह न लिखितः ?।। ६१७ । [समीक्षा] 'वस्त्रीयति, मालीयति' आदि शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ 'वस्त्र, माला' आदि शब्दों के अन्त में विद्यमान अवर्ण के स्थान में ईकारादेश की जो अपेक्षा होती है, उसकी पूर्ति दोनों ही आचार्यों ने की है। पाणिनि का सूत्र है – “क्यचि च' (अ० ७। ४। ३३)। पाणिनि ने इच्छा अर्थ में "सुप आत्मन: क्यच्' (अ० ३।१। ८) सूत्र से 'पुत्रीयति' आदि प्रयोगों के सिद्धयर्थ 'क्यच्' प्रत्यय किया है, परन्तु कातन्त्रकार एतदर्थ "नाम्न आत्मेच्छायां यिन्' (३ । २।५) से 'यिन्' प्रत्यय करते हैं। व्याख्याकारों ने 'अशनायति' आदि के सिद्ध्यर्थ सूत्र बनाना आवश्यक नहीं माना है। [विशेष वचन] १. अशनायोदन्यधनाया बुभुक्षापिपासाकाङ्क्षासु निपाता रूढा: (दु० वृ०)। २. रूढिशब्दा हि तद्धिता इति च्वावीत्त्वं मन्यते (दु० टी०)। ३. अत्र समाधिः – परदर्शने ये निपातास्ते रूढास्तेऽत्र धातव एव यिन्यभिधीयन्ते (दु० टी०)। ४. एतत्तु तद्धितानां रूढिशब्दत्वात् (वि० प०)। ५. पुनरत्र परदर्शने ये निपाता रूढास्त इह धातवोऽभिधीयन्ते (वि० प०)। [रूपसिद्धि] १. वस्त्रीयति। वस्त्र + यिन् + ति। वस्त्रमात्मन इच्छति। 'वस्त्र' शब्द से, आत्मेच्छा अर्थ में “नाम्न आत्मेच्छायां यिन्' (३। २। ५) सूत्र द्वारा 'यिन्' प्रत्यय, 'इ-न्' अनुबन्धों का प्रयोगाभाव, प्रकृत सूत्र से वस्त्रशब्दान्त्य अकार के स्थान में ईकार, 'वस्त्रीय' की "ते धातवः' (३। २।१६) से धातुसंज्ञा तथा विभक्तिकार्य। २. मालीयति। माला + यिन् + ति। मालामात्मन इच्छति। 'माला' शब्द से 'यिन्' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया पूर्ववत् ।। ६१७। ६१८. अर्घस्ल सनद्यतन्योः [३।४७८] [सूत्रार्थ] सन् प्रत्यय तथा अद्यतनीविभक्तिसंज्ञक प्रत्यय के परे रहते ‘अद्' धातु के स्थान में 'घस्लु' आदेश होता है।। ६१८।
SR No.023090
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2003
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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