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________________ ३५२ कातन्त्रव्याकरणम् (३।८।२४) से षकार को सकार, 'निमित्तापाये नैमित्तिकस्याप्यपायः' (का० परि० २७) के नियमानुसार ठकार को थकार, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से थ् को त् तथा “आकारादट औ" (३।५।४१) से औकारादेश । ____५. पफाल । फल + परोक्षा - अट् । 'जि फला विशरणे' (१।१६५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, द्विवचनादि, प्रकृत सूत्र से फ को प, तथा “अस्योपधाया दीर्घो वृद्धि मिनामिनिचट्सु" (३।६।५) से उपधासंज्ञक अकार को दीघदिश । ६. जुघोष। घुष् + परोक्षा - अट् । 'घुषिर् विशब्दे' (१।२०५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से घ को ग्, “कवर्गस्य चवर्ग:" (३।३।१३) से ग् को ज् तथा "नामिनश्चोपधाया लघोः" (३।५।२) से उपधासंज्ञक उकार को गुणादेश । ७. डुढौके। ढौक्+ ए । 'ढौकृ शब्दे' (१।३३२) धातु से परोक्षासंज्ञक 'ए' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, "ह्रस्वः" (३।३।१५) से अभ्याससंज्ञक औकार को ह्रस्व = उ तथा प्रकृत सूत्र से द को ड् आदेश | ८. दथ्यौ। ध्या + परोक्षा - अट् । 'ध्यै चिन्तायाम्' (१।२७२) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, “सन्ध्यक्षरान्तानामाकारोऽविकरणे" (३।४।२०) से ऐकार को आकार, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से धकार को दकार तथा “आकारादट औ" (३।५।४१) से औकारादेश । ९. बभार। भृ + परोक्षा - अट् । 'डु भृञ् धारणपोषणयोः' (२।८५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय । द्विवचनादि, प्रकृत सूत्र से भकार को बकार तथा ऋकार को वृद्ध्यादेश - आर् || ५०८ । ५०९. हो जः [३॥३॥१२] [सूत्रार्थ] अभ्याससंज्ञक हकार के स्थान में जकारादेश होता है ।। ५०९ । [दु० वृ०] अभ्यासहकारस्य जकारो भवति । जघान , जुहोति ।। ५०९ । [दु० टी०] हो जः । ज इत्यकार उच्चारणार्थः । 'हकवर्गयोश्चवर्गः' इत्युक्ते हकारेण चतुर्थाः सवर्णा इति हकारस्य महाप्राणस्य घोषवतो नादवतश्च तादृशझकारोऽन्तरतमो भवत्येव, किन्तु शिक्षाश्रयणे प्रतिपत्तिगौरवं स्यात् ।।५०९।
SR No.023089
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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