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________________ विषयानुक्रमणी २७ उद्भावना, सत्ता तथा पाकादिरूप क्रिया का बोध कराने वाले शब्दों की 'धातु' संज्ञा, सिद्ध कार्यों का भी साधनायत्त होना, क्रिया-कारकव्यवहार का बुद्धि के अधीन होना, व्याकरणशास्त्र का शिष्टप्रयोगानुसारी होना, सत्ता के विविध रूप तथा व्याख्याएँ, साङ्ख्यशास्त्रीय तथा बौद्धशास्त्रीय विविध मतों की चर्चा, महती संज्ञा की अन्वर्थता, धातुओं की अनेकार्थता, गोपथब्राह्मण-बृहदेवता आदि प्राचीन ग्रन्थों तथा हैमशब्दानुशासन आदि अर्वाचीन व्याकरणों में धातुसंज्ञा का प्रयोग, शब्दशक्तिप्रकाशिका में भी इसका वर्णन] ४. 'काल' का अधिकार ५१-५६ [परवर्ती सूत्रों में विशेषणवाची ‘सम्प्रति-भविष्यति-अतीते' शब्दों का ‘काले' के साथ अन्वय, आकाश की तरह काल की नित्यतादि, क्रियाभेद से काल के ऋतु आदि नाम, पाणिनीय व्याकरण में कालाधिकार का स्वतन्त्र रूप में अभाव] ___५. वर्तमाना-परोक्षा-ह्यस्तनी-अद्यतनी-क्रियातिपत्ति-भविष्यन्ती-आशी:श्वस्तनी-पञ्चमी-सप्तमी' संज्ञाओं का प्रयोग ५६-९७ वर्तमान काल में 'स्म' शब्द का प्रयोग होने पर भूतकाल में भी वर्तमाना विभक्ति का प्रयोग, भूतकाल में परोक्षा-शस्तनी-अद्यतनी-क्रियातिपत्ति विभक्तियों का,भविष्यत्काल में भविष्यन्ती-आशी:-श्वस्तनी विभक्तियों का, अनुमति-समर्थना-आशीः अर्थों में पञ्चमी विभक्ति का तथा विधि-निमन्त्रण आदि अर्थों में सप्तमी विभक्ति का व्यवहार, पाणिनीय लट् आदि लकारों की अपेक्षा वर्तमाना इत्यादि संज्ञाओं की अन्वर्थता तथा लट् आदि लकारों की सङ्केतपरता, राजकृत क्रियाओं के आधार पर 'पर्वतास्तिष्ठन्ति' आदि वाक्यों का प्रयोग, लोकव्यवहार के आधार पर द्रव्यसमवेत क्रियाओं में अतीतअनागत की विवक्षा, आचार्य हेमकर के प्रलाप की गवेषणा, 'वर्तमान-परोक्ष-अद्यतनअनद्यतन-आशीः' आदि शब्दों का अर्थविचार, परोक्ष-अपरोक्षरूप अतीतकाल के दो भेद, 'वेदान्तवादी-व्यवहारवादी' आदि आचार्यों के विविध मत, वर्तमान के सामीप्य आदि ४ भेद, ३ प्रकार की परोक्षता, सत् की अविवक्षा, असत् की विवक्षा, मण्डपमयूर आदि निरन्वय संज्ञाएँ, काल के ११ भेद, शिष्टव्यवहार के अनुसार कालविशेष में 'वर्तमाना' आदि विभक्तियों का प्रयोग, १४ श्लोकों में भविष्यन्ती-सप्तमी आदि विभक्तियों के प्रयोग, कुछ अव्ययों का नियतप्रयोग, ‘अनुमति-व्यापार-अनुज्ञा' आदि शब्दों के अर्थ, शर्ववर्मा के द्वारा आद्य व्याकरण का देखा जाना, 'वररुचि-चन्द्रगोमी' आचार्यों के मत तथा विधि में छह प्रतिपत्तियाँ ] ६. 'पञ्चमी-अद्यतनी-शस्तनी' का विशेष प्रयोग ९७-१०८ [क्रियासमभिहार अर्थ में वर्तमान धातु से सभी कालों में पञ्चमीविभक्तिसंज्ञक मध्यमपुरुष-एकवचन का, 'मा' शब्द के योग में धातु से अद्यतनी विभक्ति का तथा
SR No.023089
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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